Tuesday, 30 May 2017

...और मैंने सिगरेट शराब सब छोड़ दी!

...और मैंने सिगरेट शराब सब छोड़ दी!
वैसे सिगरेट पीना मैंने शौक से ही शुरू किया था. ऐसे ही कॉलेज के दिनों में दोस्तों के साथ स्टाइल मारने के लिए! तब सिगरेट के धुंए का छल्ला बनाना और किसी के मुंह पर धुंवा छोड़ना एक शौक था. पिकनिक वगैरह में तो सिगरेट और माचिस की डिबिया मेरी पहचान हुआ करती थी. सिगरेट पीते हुए फोटो खिंचवाने का भी शौक पाल लिया था. उन दिनों देवानंद मेरे पसंदीदा हीरो हुआ करते थे.  “हर फ़िक्र को धुंएँ में उड़ाता चला गया...” भी गुनगुना लेता था.
पढाई के बाद नौकरी भी लग गई वह भी एक अच्छी कंपनी में. यहाँ भी मेरा शौक हावी रहा. हर बुरे काम में कुछ साथी भी में मिल ही जाते हैं. काम से फुर्सत के बाद या काम से फुर्सत निकाल कर सिगरेट पी लेता था. जहाँ धूम्रपान करना मना होता था, वहां से बाहर निकलकर बाथ-रूम में या स्मोकिंग ज़ोन में. हमारे अधिकारी भी कभी-कभी हमसे सिगरेट मांग लेते थे. और मैं उनके साथ सिगरेट पीते हुए गौरवान्वित महसूस करता था. कभी-कभी मुझे भी उनके साथ महंगे ब्रांड वाला सिगरेट पीने का आनंद मिल जाता था. खांसी होने पर भी खांसी की दवा के साथ सिगरेट पीना जरूरी होता था... हमारे दूसरे सहकर्मी अधिकारी के साथ उतने सहज नहीं होते थे जितना मैं.
पार्टियों में भी सिगरेट और शराब की आदत को खूब हवा मिलती थी. शराब के कुछ घूँट हलक में जाने के बाद एन्जॉय करने का मजा ही कुछ और था. उस समय अपने सहकर्मियों/अधिकारियों की पोल खोलने का आनंद – क्या कहने! सहकर्मी आनंदित होते थे या मेरा मजाक उड़ाते थे, मुझे कुछ समझ में नहीं आता था. मैं तो सबकी परतें खोलने में ही मशगूल रहता था... बाकी लोग ठहाका लगाते या आहुति डालने का काम करते थे!
“ये देखो ये जो सीधा साधा बंदा रमेश दिख रहा है न ... डरता है साला, अपनी बीबी से, जोरू का गुलाम!”... “जूस पीता है!” ... “यार पी के देखो शराब! ... तब बोलना इसे अच्छा या ख़राब!”....और मैं गिर गया जमीन पर ...उल्टी भी हुई ! .... जब होश आया थो खुद को अपने घर में पाया... पत्नी मेरे सिर पर ठंढा पानी डाल रही थी. और जोरू का गुलाम रमेश, मेरा मित्र, मेरे सामने बैठा था.
अब मेरी पत्नी पार्टियों में मेरे साथ जाने से कतराने लगी ...नहीं जाने का कोई न कोई बहाना बना देती थी. शायद अन्य महिलाओं के सामने मेरी हरकत से उसे शर्मींदगी महसूस होती थी.
*****
मेरी बच्ची बड़ी होने लगी थी और मेरी आदत को देख रही थी चुपचाप!... होकर आवाक !
मैं घर में शराब या सिगरेट नहीं पीता था. कोई सामान लाने का बहाना बनाकर निकल लेता था और बाहर से ही सिगरेट पीकर आ जाता था.
फिर एक दिन मुझे घर में सिगरेट की तलब लगी और मैंने अपनी पत्नी से कहा – “अरे! धनिया पत्ता लाना तो भूल ही गया ...आ रहा हूँ लेकर ...”
“हाँ पापा चलिए मैं भी आपके साथ चलती हूँ, मुझे भी आइसक्रीम खानी है.” मेरी बेटी ने  बड़े प्यार से कहा. बेटी को आइसक्रीम खिलाकर, धनिया लेकर वापस आ गया. फिर मुझे याद आया कि मुझे एक मित्र से मिलना है. बेटी बोली – हाँ पापा! चलिए, मैं भी आपके साथ चलती हूँ..... मेरा माथा ठनका! ...मेरी बेटी सब समझ रही थी! मैंने उसे समझाने की कोशिश की. – “तुम तो घर में पढ़ाई करो. मुझे शायद देर हो जाय!”
“मैं रात में जगकर पढाई कर लूंगी, पर आज मैं आपको अकेले नही जाने दूंगी ...मुझे पता है, आप कहाँ जाना चाहते हैं....” और वह फूट फूट कर रोने लगी ... मैं अपनी एकमात्र बेटी को बहुत मानता था.... उसका रोना मुझसे देखा नहीं जाता था. उसकी हर ईच्छा मैं पूरी करता था... पर सिगरेट की लत!... उफ्फ.... और उसी समय मैंने अपनी पत्नी और बेटी के सामने कसम खाई ... “मैं तुमदोनो की कशम खाता हूँ... अब से शराब-सिगरेट को हाथ नहीं लगाऊँगा...” गजब का परिवर्तन आ गया था मुझमे... मेरे सहकर्मी मित्र आश्चर्यचकित थे. उन्होंने मुझे हिलाने-डुलाने की बहुत कोशिश की... पर अब मैं अपनी बेटी को बहुत मानता हूँ. अपनी बेटी को दुखी नहीं देख सकता था. आज मेरी बेटी मुझसे दूर है फिर भी ... सिगरेट ? ना... शराब?.... ना-बाबा-ना!   
(मौलिक और अप्रकाशित- मेरे सहकर्मी मित्र की आप बीती पर आधारित यह कहानी सत्य है)
-    जवाहर लाल सिंह, 133/L4, ओल्ड बाराद्वारी, साक्ची, जमशेदपुर.

-    संपर्क – 9431567275  

Saturday, 20 May 2017

माहौल बिगाड़ने की कोशिश

झाड़खंड यानी वनों से आच्छादित प्रदेश! यहाँ की धरती भी रत्नगर्भा है. यहाँ के लोग काफी मिहनती और मेधावी हैं. टाटा, बिरला, जिंदल, रिलायंस, हिताची आदि घरानों के अलावा राज्य और केंद्र सरकार की अनेक संस्थाएं यहाँ सही ढंग से कार्यरत हैं, साक्षर और गैर साक्षर लोग किसी ने किसी रोजगार या ब्यवसाय से जुड़े हैं. मिहनतकश लोग खेतों कारखानों या जंगलों पहाड़ों पर अपने अपने काम में ब्यस्त हैं. ज्यादातर लोग ऐसे हैं जिन्हें अपने काम से काम रहता है. ये लोग अपनी मिहनत के बल पर अपने परिवार और खुद को विकास के रफ़्तार से जोड़ना चाहते हैं. पर कुछ लोग तो है जिनके दिमाग में शैतान ने घर बना लिया हैं. ये लोग नहीं चाहते – लोग अमन चैन से रहें. इसलिए बीच-बीच में माहौल ख़राब करने की कोशिश की जाती है. कभी डायन के नाम पर, कभी बच्चा चोरी के नाम पर तो कभी छेड़छाड़ के नाम पर. सबका अंतिम उद्देश्य होता है, मामले को साम्प्रदायिक मोड़ दे देना. चाहे गोरक्षा के नाम पर, तो कभी धर्म स्थान के नाम पर! तकरीबन एक साल पहले कुछ शराबी गुंडों ने आपसी लड़ाई को धर्म से जोड़ दिया और तीन दिन तक जमशेदपुर में कर्फ्यू लागू रहा. आमलोगों को बहुत परेशानी हुई. उस समय मुख्य मंत्री रघुवर दास और सरयू राय ने स्थिति को नियंत्रण में लाया. फिर एक बार ऐसी ही स्थिति उत्पन्न हो गयी है जिसे ये दोनों नेता संभालने का हरसंभव कोशिश कर रहे हैं. आम लोगों से अपील की जा रही है कि अफवाहों पर ध्यान न दें, नहीं कानून अपने हाथ में लें.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार - झारखंड में भीड़ ही अदालत होती जा रही है. कहीं हलीम और नईम को भीड़ ने मार दिया तो कहीं गौतम कुमार और गंगेश कुमार को भी भीड़ ने मार दिया. क्या ऐसा हो सकता है कि कोई समूह यह टेस्ट कर रहा हो कि अलग अलग अफवाहों के कारण भीड़ किसी को मार सकती है या नहीं. कभी यह भीड़ गाय के नाम पर बन जा रही है तो अब सुनने में आ रहा है कि बच्चा चोरी के नाम पर बन रही है. इस सवाल पर गंभीरता से सोचा जाना चाहिए कि व्हाट्सऐप पर ग्रुप बनाकर अफवाह बनाने वाले क्या यह टेस्ट कर रहे हैं कि लोग वाकई कितने मूर्ख हैं, और उन्हें किन किन मसलों में भीड़ के भेड़ की तरह हांक कर हत्यारे में बदला जा सकता है. ऐसी भीड़ के सामने प्रशासन भी बेबस नज़र आता है. कुछ तो है कि न प्रशासन इस भीड़ की राजनीति को समझ रहा है न ही समाज और न ही राजनीति. झारखंड में बच्चा चोरी की घटना होगी तो पुलिस का काम है पकड़ना या भीड़ किसी को भी शक के आधार पर घेर कर मार देगी.
सरायकलां खरसावां के राजनगर में सुबह सुबह बच्चा चोरी के संदेह में चार लोगों को पीट पीट कर मार दिया गया. सभी मुसलमान थे और कारोबारी थे. भीड़ का हौसला देखिये कि चारों की हत्या अलग अलग जगहों पर ले जाकर की गई. एक की हत्या शोभापुर में, दूसरे की डांडू, तीसरे व्यक्ति का शव सोसोमाली गांव में मिला, जबकि चौथे व्यक्ति का शव धोबो डुंगरी के जंगल में मिला. हल्दीपोखर निवासी शेख हलीम, मोहम्मद नईम, सज्जाद और सिराज रात दो बजे राजनगर की तरफ़ जा रहे थे. अचानक उनकी कार रोकने की कोशिश की गई. डर कर पड़ोस के गांव में रिश्तेदार के घर चले गए. लेकिन भीड़ वहां भी पहुंची, सीधी धमकी दी गई की सबको सौंप दो नहीं तो पूरे घर को आग लगा देंगे. चारों को भीड़ अपने साथ ले गई और फिर हत्या कर दी.
इस काम में हम सिर्फ मरने वाले को देखते हैं, यह नहीं देखते कि इस भीड़ की राजनीति में हमारे नौजवान हत्यारे हो रहे हैं. हिंदुस्तान अख़बार के वरिष्ठ पत्रकार अनीस ख़ान ने जो जानकारी वहां लोगों से बात कर बताई वो वाकई ख़तरनाक है. बच्चा चोरी की अफवाह को लेकर वाट्सऐप ग्रुप बनाया गया, फिर युवकों की टोली बनाई गई और बच्चा चोरी की बात फैलाई जाने लगी. यही इस समस्या की जड़ हो सकती है, क्या कोई ग्रुप है जो अलग अलग अफवाहों के ज़रिये यह टेस्ट कर रहा है कि भीड़ किसी को घेर कर मार सकती है या नहीं. अभी तक हम इसे इस रूप मे देखते रहे हैं कि भीड़ ने मुसलमानों को घेर कर मार दिया लेकिन गौतम कुमार वर्मा, विकास कुमार वर्मा और उनके दोस्त गंगेश कुमार भी इस भीड़ के शिकार हुए हैं.
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मई की रात में बागबेड़ा के नागाडीह गांव में बच्चा चोरी के आरोप में जुगसलाई के गौतम कुमार वर्मा, विकास कुमार वर्मा और उसके दोस्त गंगेश कुमार की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई. यही नहीं, 65 साल की रामचंद्र देवी की बुरी तरह पिटाई की गई. इनकी हालत गंभीर है. गौतम और विकास सगे भाई हैं. उनके तसीरे भाई उत्तम को भी भीड़ ने पकड़ लिया था, लेकिन वो बचकर भागने में कामयाब रहे. उत्तम ने ही बताया कि भीड़ ने उनसे पूछताछ की और अचानक बच्चा चोर की बात कहकर उनपर हमला बोल दिया गया. झारखंड के सारे अखबारों इन ख़बरों से भरे पड़े हैं. इन्हीं से पता चलता है कि गौतम और विकास को पहले बिजली के खंभे से बांधकर पीटा गया. वहां आसपास के गांव के लोग बड़ी संख्या में जमा हुए थे. हैरानी की बात है कि इतनी बड़ी संख्या में लोग जुट रहे मगर किसी ने रोका नहीं. थानेदार साहब साढ़े आठ बजे पहुंचे, भीड़ को समझाने की कोशिश की, लेकिन उल्टा पुलिस पर भी हमला किया गया. थानेदार घायल हो गए. आखिर रात 10 बजे सिटी एसपी पहुंचे, तब जाकर कार्रवाई शुरू हुई. तब तक गौतम विकास और गंगेश की हत्या हो चुकी थी.
कोल्हान प्रमंडल जिसमें पांच ज़िले हैं, वहां 8 लोगों की हत्या हो चुकी है. अगर पूरे झारखंड की बात करें तो अब तक अफ़वाह के नाम पर 18 लोगों की हत्या की गई. हाल के कुछ घटनाओं पर सिलसिलेवार ब्यौरा कुछ इस प्रकार है--
2 मई 2017 : डुमरिया में 60 साल के बुज़ुर्ग की इसी तरह हत्या कर दी गई थी
2 मई : जादूगोड़ा के यूसिल बैराज के पास जॉन एंथनी की पिटाई की गई

2 मई : गालूडीह में बच्चा चोर बताकर एक अज्ञात व्यक्ति की बुरी तरह पिटाई

1 मई : आसनबनी तालाब के पास मोहम्मद असीम की हत्या, उसी दिन राखा माइंस स्टेशन के पास सद्दाम अंसारी उर्फ़ छोटू की पिटाई
. गालूडीह के पुतड़ू गांव के पास सुधीर सिंह की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई. सुधीर भीख मांगकर गुज़ारा करते थे.
13 मई : घाटशिला थाना क्षेत्र में सलमान मियां को पीटा गया

14 मई : जमशेदपुर के पोटका थाने में एक व्यक्ति को पीट-पीटकर मार डाला

14 मई : जादूगोड़ा में मानसिक रूप से कमज़ोर महिला को बुरी तरह पीटा गया

15 मई : सुंदर नगर के खुकराडीह में सत्यपाल सिंह को भीड़ ने पीटा

16 मई : घाटशिला में दिमागी तौर पर कमज़ोर युवक की पिटाई की गई

17 मई : जादूगोड़ा में उग्र भीड़ ने दिमागी तौर पर कमज़ोर युवक पर बच्चा चोरी का आरोप लगाया गया और पिटाई की गई
19 और 20 मई को यह आग जमशेदपुर शहर में पहुँच गयी और मुस्लिम बहुल इलाकों में माहौल बिगाड़ने की कोशिश हुई. पुलिस पर पथराव हुए और सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने की भरपूर कोशिश की गयी. प्रशासन और सरकार की सूझ-बूझ से माहौल को सम्हाला गया है, पर स्थिति कब भयावह हो जायेगी कहना मुश्किल है.
हम आमलोगों से अपील करते हैं कृपया अफवाहों के बहाव में न आयें न ही कानून अपने हाथ में लें. पुलिस और प्रशासन की मदद करें. गणमान्य लोग भी यही अपील कर रहे हैं. नुक्सान हमेशा आम जनता का होता है. चंद लोग इसमें अपना नेतागिरी चमका लेते हैं, कुछ बेरोजगार आवारा किश्म के नौजवानों की बदौलत! सबसे ज्यादा जरूरत है हर हाथ और दिमाग को काम दिया जाय ताकि लोग ब्यस्त रहें! तभी होगा सबका साथ और सबका विकास!  जय झाड़खंड ! जयहिंद!

 --- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Friday, 5 May 2017

न्याय मिला निर्भया को

सदमे की सुनामी थी निर्भया कांड, राक्षस से कम नहीं थे ये चारों...SC की 10 बड़ी बातें
निर्भया कांड पर दोषियों की अपील पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जज बेहद तल्‍ख दिखे। उन्होंने एकतरफा इस अपील को खारिज कर दिया। 
सुप्रीम कोर्ट ने 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में निर्भया के साथ हुए गैंगरेप के चारों आरोपियों की फांसी की सजा को बरकरार रखा है। अपने 15 मिनट तक पढ़े गए फैसले में कोर्ट ने वो 10 आधार बताए जिसकी वजह से चारो दोषियों को फांसी की सजा दी गई। कोर्ट ने अपने फैसले में बेहद तीखी टिप्पणी कर इस घटना को देश में सदमें की सुनामी करार दिया। वहीं दो‌षियों को राक्षसी दरिंदों से कम नहीं बताया।
निभर्या केस पर सुप्रीम कोर्ट की तल्‍ख टिप्पणी
1.
जजों ने 2 बजकर 3 म‌िनट पर फैसला पढ़ना शुरु क‌िया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि चारों आरोपियों ने निर्भया के साथ जिस तरह का बर्बरता पूर्ण व्यवहार किया उससे ये साबित होता है कि अपने तरह का अनोखी घटना है।
2.
यह मामला रेयरेस्ट आफ रेयर है। केस की मांग थी कि न्यायपालिका समाज के सामने एक मिसाल पेश करे।
3.
निर्भया कांड में कोर्ट का फैसला आते ही अदालत कक्ष में तालियां बजीं।
4.
अदालत ने कहा इस मामले में कोई रियायत नहीं दी जा सकती।
5.
निर्भया कांड सदमे की सुनामी थी। जिस तरह से अपराध हुआ है वह एक अलग दुनिया की कहानी लगती है।
6.
दोषियों ने हिंसा, सेक्स की भूख की वजह से अपराध किया।
7.
वारदात को क्रूर और राक्षसी तरीके से अंजाम दिया गया।
8.
उम्र, बच्चे, बूढ़े मां-बाप ये कारक राहत की कसौटी नहीं।
9.
इस अपराध ने समाज की सामूहिक चेतना को हिला दिया।
10.
पीडि़ता का मृत्यु पूर्व बयान संदेह से परे
अदालत ने विवेकानंद का उल्लेख करते हुए कहा कि देश के विकास को मापने का सबसे अच्छा थर्मामीटर है कि हम महिलाओं के साथ कैसे पेश आते हैं।
तीन जजों की बेंच में से एक जज भानुमति का फैसला शेष दो जजों से अलग है। जस्ट‌िस भानुमत‌ि ज‌िनका फैसला अन्य जजों से अलग रहा उन्होंने कहा क‌ि हमारे यहां एजुकेशन स‌िस्टम ऐसा होना चाह‌िए ज‌िससे क‌ि बच्चे मह‌िलाओं के साथ कैसा व्यवहार करना है ये सीख सकें। जस्ट‌िस भानुमत‌ि ने स्वामी व‌िवेकानंद के एक कोट को रेफर करते हुए कहा क‌ि कैसे परंपराएं ज्ञान और श‌िक्षा के साथ म‌िलकर समाज में मह‌‌िलाओं के न्याय द‌िलाने का काम करती हैं।
2012 में जब ये मामला सामने आया तब देशभर में इस मामले को लेकर ज़बरदस्त गुस्सा फूट पड़ा था. विदेशों में भी इस बलात्कार कांड को लेकर निंदा हुई थी. इस मामले में दोषियों की फांसी की सज़ा पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का सभी को इंतज़ार था. सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आते ही सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई.
ट्विटर पर लोग इस फ़ैसले का स्वागत कर रहे हैं, कई लोगों का कहना है कि अब निर्भया को न्याय मिला है. दीक्षा वर्मा ने लिखा है कि कभी कभी लोकतंत्र को सख्त और दयाहीन होना चाहिए, नहीं तो अपराधियों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती जाएगी. सोनम महाजन ने लिखा है ,''निर्भया के बलात्कारी को फांसी की सज़ा मिलनी चाहिए थी, इससे कम कोई सज़ा नहीं हो सकती थी. और उन सभी में वो कथित नाबिलग मोहम्मद अफ़रोज़ भी शामिल है.'' तहसीन पूनावाला लिखते हैं,'' निर्भयाकांड के बाद आज भी कई महिलाओं का बलात्कार हो रहा है, उनका शोषण हो रहा और न्याय नहीं दिया जा रहा. मुझे उम्मीद है कि आज हम उन सभी तक पहुंच पा रहे हैं.'' अभिषेक सिंह ने लिखा है कि फांसी ही एक ऐसा तरीका है जिससे रेप रोके जा सकते हैं. पुरुषों को महिलाओं के साथ कुछ भी करने से पहले मौत का डर होना चाहिए. वहीं सिद्धी माथुर लिखती हैं कि निर्भया को न्याय मिला लेकिन आधा. सुप्रीम कोर्ट को उस क्रूर नाबालिग को भी सज़ा देनी चाहिए. किशोर भट्ट लिखते हैं कि नाबालिग को भी फांसी देनी चाहिए. अगर वो इतना बड़ा था कि रेप कर सके तो सज़ा भी काट सकता है. वहीं कवि श्री कुमार विश्वास ने लिखा है, '' बहन निर्भया हम शर्मिंदा हैं कि हम सबके रहते ऐसा हुआ. ईश्वर तुम्हारी आत्मा को संतोष दे कि निर्मम गुनाहगारों को आख़िर सज़ा मिली.''
"जिन लोगों ने मेरे साथ ये गंदा काम किया है उन्हें छोड़ना मत " ये वाक्य डीसीपी साउथ छाया शर्मा को निर्भया ने तब कहे थे जब छाया उससे पहली बार सफ़दरजंग अस्पताल में मिलने गई थी. छाया ने मीडिया से बात करते हुए कहा. "दिल्ली पुलिस ने जो सबूत पेश किए है वो एकदम ठोस है," सप्रीम कोर्ट के तीन जजों ने फ़ैसला देते हुए कहा. "इन सभी आरोपियों को सज़ा निर्भया के कारण ही मिली है. वो अपने बयान पर निरंतर क़ायम रही "
उन्हें आज भी वो दिन याद है जब वो 23 साल की निर्भया से वह पहली बार मिली थी. "उसकी हालत बहुत ख़राब थी. उससे बोला नहीं जा रहा था लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी,". निर्भया ने पहला अपना बयान अस्पताल के डॉक्टर को दिया फिर एसडीएम और फिर जज के सामने. तीनों बार वो अपने बयान पर क़ायम रही. उसने ऐसी छोटी छोटी बातें अपने बयान में बोली जो आख़िर कर पुलिस के लिए बहुत अहम साबित हुई. निर्भया की मौत के पहले के इन बयानों को डाइइंग डिक्लेरेशन माना गया. निर्भया की मौत हादसे के 13 दिन बाद सिंगापुर में हुई.
अपराध होने के 18 घंटो के अंदर पहले आरोपी बस ड्राइवर रामसिंह को गिरफ़्तार किया. "पूछताछ के बाद सभी आरोपी गिरफ़्तार कर लिए गए,". आज जब सप्रीम कोर्ट ने पुलिस की जांच पर मुहर लगते हुए आरोपियों को सज़ा सुनाई तब जो पुलिस वाले इस तफ्तीश से जुड़े थे उनके चेहरों से परेशानी कुछ समय के लिए ग़ायब हो गई. सब अपनी की हुई तफ़तीश पर फक्र करने लगे. "हमने इस मामले में आरोप पत्र सिर्फ़ 18 दिन में कोर्ट में पेश किया था. वो आरोप पत्र इतना पक्का था कि तीन अदालतों ने उस को सही ठहराया. अगर उसमें कोई ख़ामी होती तो सप्रीम कोर्ट आज हमें ही टांग देती." 
इसमें कोई दो राय नहीं कि लगभग साढ़े चार सालों बाद आखिरी फैसला सुप्रीम कोर्ट से आ गया, जिसका सबको बेसब्री से इन्तजार था. लेकिन तब से अब तक पूरे देश में लाखों घटनाएँ हो चुकी हैं जिनमे औसतन सिर्फ ३०% को ही सजा मिल पाती है वह भी काफी जद्दोजहद के बाद. काफी घटनाएँ तो ऐसे माहौल में घटित हो जाती हैं जिनकी रिपोर्टिंग तक नहीं होती. तीन साल तक की बच्ची से लेकर वृद्धा तक के साथ ऐसे हादसे होते रहते हैं और समाज सुधरने का नाम नहीं ले रहा. एक तो वातावरण ही इतना विषाक्त हो गया कि हम सभी आध्यात्म और सात्विकता से दूर भागते चले जा रहे हैं. दूसरा स्त्रियों के प्रति पुरुषवादी सोच शुरू से हवी रहा है. विधाता ने स्त्रियों को शारीरिक रूप से कमजोर बनाया है और थोड़ी वे मन से भी कमजोर होती हैं जिसका कारण हमारा सामाजिक पारिवारिक वातावरण है. कुछ  तो करना होगा ताकि ऐसे आपराधिक घटनाएँ घटे ही नहीं. हमारे बुद्धिजीवी, मनीषी, ऋषि, योगी, नीतिनिर्धारक, विधिवेत्ता, सामजिक कार्यकर्ता, नेता सभी को मिलकर इस पर गंभीर रूप से विचार करने की आवश्यकता है. केवल नारा और भाषणबाजी से तो कुछ होता जाता नहीं है. धरातल पर काम होने चाहिए. उत्तर प्रदेश के योगी जी ने एंटी रोमियो स्क्वाड के ही जरिये कुछ कदम उठाया तो है जिससे काफी लड़कियां और महिलाएं राहत महसूस कर रही हैं. सभी राज्य सरकारों को ऐसे कदम उठाने चाहिए और शराब आदि नशा पर तो प्रतिबन्ध लगाने ही चाहिए क्योंकि ज्यादातर अपराध शराब के नशे में होते हैं.
हमें न्यायधीशों, पुलिसकर्मियों, डॉक्टरों और वकीलों के प्रति सम्मान व्यक्त करना चाहिए जिन्होंने न्याय दिलाने में अपना जी जान लगा दिया. एक बार पुन: कह सकते हैं सत्यमेव जयते और भारत माता की जय! जय हिन्द!

-    - जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर!