दिल्ली का दंगल! हस्तिनापुर का धर्मयुद्ध !
दिल्ली का चुनाव दिन प्रतिदिन रोचक होता जा रहा है, नेताओं के बयान और मीडिया का चटखारे लेकर परिचर्चा करना भी उनकी मजबूरी है. दोनों पक्षों को पुचकारना, ललकारना, भी इन्हे खूब आता है. रोज नित नए-नए सर्वे आ रहे हैं, उनमे भाजपा की सरकार को पूर्ण बहुमत से बनता हुआ दिखलाया जा रहा है. जहाँ केजरीवाल मुख्य मंत्री के लिए पहली पसंद माने जा रहे हैं, वहीं कैजरीवाल और किरण बेदी दोनों को अपनी सीट से हारते हुए भी दिखलाया जा रहा है. ओपिनियन पोल सैंपल सर्वे होता है और उसके आधार पर एक अनुमान भर लगाया जा सकता है. अंतिम सत्य तो नतीजे आने के बाद ही पता चलेंगे. लोगों के ओपिनियन भी रोज बदलती रहती है. पिछली बार यानी लोक सभा के चुनाव के समय चाणक्य टी वी चैनेल का सर्वे सबसे ज्यादा सटीक पाया गया था, इस बार वह अभी तक मेरी जानकारी में नहीं दीख रहा है. राजनीतिक पंडित अपनी अपनी तरह से सधी हुई प्रतिक्रिया दे रहे हैं. यह भी सुना गया है कि अपनी स्वतंत्र राय रखने के कारण कुछ जाने माने पत्रकारों को अपनी नौकरी भी गँवानी पड़ रही है. बेबाकीपन सही है, पर हर न्यूज़ चैनेल का एक मालिक होता है, उसकी विचारधारा और समय के साथ अपना हित-साधन भी होता है. सत्ता की भूख हर एक को होती है, वहीं सत्ता की चरण वंदना प्रासंगिक भी होता है.
अब आते हैं बुजुर्ग शांति भूषण के बयान पर- उनका अपना ८८ साल का अनुभव है. कानूनविद हैं, इंदिरा गांधी के खिलाफ राजनारायण को अदालत में जिताने वाले वही महापुरुष है. आज उन्हें अपने ही आँगन का पौधा(आम आदमी पार्टी का मुखिया) ख़राब लगने लगा हैं. वह भी कब? जब फसल पकने वाली है तब. ऐसी क्या मजबूरी हो गयी बुजुर्ग महोदय की, कि अपनी पार्टी का संयोजक और सबसे लोकप्रिय नेता ही उनको नागवार लगने लगा और दूसरी पार्टी में अभी-अभी शामिल हुई बेटी(बेदी) अच्छी लगने लगी. अन्ना बेचारे अपने दोनों प्रिय शिष्यों से नाराज होकर फिर से आंदोलन की राह पर आने की बात करने लगे हैं. माननीय शांति भूषण की बात सही हो सकती है, पर जिस समय उन्होंने अपना विचार, वह भी मीडिया के समक्ष रक्खा, केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को नुक्सान ही पहुंचाने वाली कही जाएगी. क्या उनसे कोई राय मशविरा नहीं लेता था, या वे भी लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे किनारे लगा दिए गए थे. ऐसा कहना जरा मुश्किल है, क्योंकि उन्होंने पार्टी को दो करोड़ रुपये का चंदा दिया है. पार्टी को बनाने और खड़ी करने में उनका महत्वपूर्ण योगदान है. जहाँ केजरीवाल एक भिखारी से पांच रुपये चंदा लेकर सभाओं में चर्चा करते हैं. वहां दो करोड़ माने रखता है. कहीं शांति भूषण जी को अपना पैसा डूबता हुआ तो नहीं लग रहा है. खैर उनकी वे जाने पर जिस पार्टी को उन्होंने खड़ा किया उसको इस तरह प्रतिकूल समय में झकझोड़ने की क्रिया मेरी समझ से परे लग रही है. या तो उनको पहले ही हिदायत देनी चाहिए थी या फिर यह बयान पहले ही देना चाहिए था. अगर उनकी बात न सुनी जाती हो, तो गलती केजरीवाल और उनके सहयोगियों की हो सकती है. वैसे केजरीवाल की सभाओं में भीड़ और विरोध दोनों जारी है. अब ७ और 10 फरवरी की बारी है. देखना यही है कि कौन कितना भारी है.
दूसरी तरफ मोदी और अमित शाह तो चन्द्रगुप्त और चाणक्य की जोड़ी बनकर भारत विजय पर निकल चुके हैं, जहाँ उन्हें हर कदम पर सफलता मिल रही है. उनकी दूरदृष्टि, और राजनीतिक कौशल सराहनीय तो है ही. अगर जनता और देश के हित में अच्छा होता है तो उससे बढ़कर और क्या होना चाहिए. काफी दिनों बाद एक परिवर्तन की लहर चली है और अभी तक वह लहर अपने अस्तित्व में है.
मेरी राय में जितनी आवश्यकता इस देश को मोदी जैसे कर्मठ प्रधान सेवक की है, उतनी ही जरूरत केजरीवाल जैसे लोगों की भी है. एक सशक्त विपक्ष का होना भी लोकतंत्र के लिए जरूरी होता है, अन्यथा शासक तानाशाह हो जाता है. अब भाजपा का यह कहना कि राज्य और केंद्र में एक पार्टी की सरकार होने से ही जनता का फायदा होता है, यह बात बेमानी है. एक समय ऐसा भी था जब अधिकतर राज्यों में और केंद्र में कांग्रेस की ही सरकारें हुआ करती थी. तब क्या असंतोष नहीं था. वैसे दिल्ली अमित शाह और मोदी जी का नाक का सवाल है तो केजरीवाल के लिए अस्तित्व का सवाल. राजनीति में कुछ गलतियों की सजा काफी दिनों तक भोगनी परती है.केजरीवाल की गलती, नितीश कुमार की भयंकर भूलें उन्हें चैन से सोने नहीं देगी. चाहे जो हो, कुछ तो बात है केजरीवाल में जिसे हराने के लिए महाभारत के पात्र अभिमन्यु, कर्ण और दुर्योधन से तुलना भी की जाने लगी है.
आज जब मतदान का प्रतिशत बढ़ रहा है, जनता की भागीदारी बढ़ रही है, लोग जागरूक हो रहे हैं , इसका मतलब है कि लोकतंत्र अपने पूर्ण अस्तित्व में है. ऐसे में अमरीका जैसे बड़े लोकतान्त्रिक और शक्तिशाली देश के प्रधान (राष्ट्रपति) का भारत की गणतंत्र दिवश समारोह में मुख्य अतिथि बनकर आना दोनों देशों के लिए फायदेवाली बात होगी. एक तरफ आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई है, तो दूसरी तरफ ब्यावसायिक सहयोग दोनों देशों के संबंधों को मजबूत करेगा. लेकिन बेचारे ओबामा अचानक परिवर्तित कार्यक्रम के अनुसार प्रेम का प्रतीक ताजमहल को नहीं देख पायेंगे. पिछली बार भी हुमायूँ का मकबरा देखकर संतोष करना पड़ा था, इस बार सऊदी अरब का दौरा …
फिर भी उनकी अभूतपूर्व सुरक्षा ब्यवस्था, अनगिनत सी. सी. टी. वी. कैमरे, भारतीय सुरक्षा कर्मी, सेना के अलावा ओबामा का अपना सुरक्षा घेरा भी कारगर होगा, जिसके अनुसार हर भारतीय सेना के जवान की भी तलाशी ली जायेगी. हमारे भारतीय सेना की स्थिति ऐसी भी हो सकती है …किसी ने सोचा था क्या ? सभी प्रदर्शित किये जानेवाले सामरिक आयुध में कहीं भी गोला बारूद नहीं होगा. अभूतपूर्व होगा वह नजारा जब भारतीय राष्ट्रपति महामहिम प्रणव मुखर्जी के साथ अमरीकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा के साथ भारत के प्रधान सेवक श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी मजबूत सुरक्षा घेरे में एक बुलेटप्रूफ कांच के दीवार के सामने से भारत के राजपथ पर गणतंत्र दिवश का भव्य समारोह देख रहे होंगे.
अभीतक के समाचारों के अनुसार ओबामा और मोदी का इंदिरागांधी अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर गले गले मिलना, राजघाट पर पीपल का पौधा रोपण, श्रद्धांजलि, बापू की मूर्ती और चरखा का भेंट, राष्ट्रपति भवन में २१ तोपों की सलामी से स्वागत, हैदराबाद हाउस के लॉन में चाय पर चर्चा और न्युक्लीअर डील की सारे बाधाएं दूर होना, सबकुछ सराहनीय है. भारत और अमेरिका के बीच नए और मजबूत संबंधों की शुरुआत हुई है. दोनों देश आतंकवाद और पर्यावरण संरक्षण पर भी मिलकर काम करेंगे.
अब चूंकि बसंतपंचमी के आगमन के साथ ज्यादातर हिन्दू, युवक-युवतियां, छात्र-छात्राएं, सरस्वती वंदना में मशगूल हैं, कुछ लोग ओबामा की ही वंदना कर रहे हैं. कुछ लोग ओबामा को कुरुक्षेत्र के इस युद्ध में ओबामा को कृष्णावतार से भी जोड़कर देख रहे हैं. सरस्वती पूजा के दौरान बहुत सारी बच्चियां, किशोरियां, पीत परिधान में, साड़ी सम्हालती हुई, सकुचाती, मुस्काती नजर आती हैं. ऐसे समय में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान की शुरुआत प्रधान मंत्री के द्वारा वह भी हरियाणा के पानीपत से. कुछ लोग इसे पानीपत के चौथी लड़ाई से भी जोड़कर देख रहे हैं. बेटियां सुरक्षित हो, शिक्षित हों, तभी तो वह एक अच्छी बहन, बहू और माँ बनेंगी. धन्य है हमारी मातृभूमि, पुण्यसलिला, सस्य श्यामला. यह धरती माँ … इन्हे बार बार नमन! जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी.
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर
दिल्ली का चुनाव दिन प्रतिदिन रोचक होता जा रहा है, नेताओं के बयान और मीडिया का चटखारे लेकर परिचर्चा करना भी उनकी मजबूरी है. दोनों पक्षों को पुचकारना, ललकारना, भी इन्हे खूब आता है. रोज नित नए-नए सर्वे आ रहे हैं, उनमे भाजपा की सरकार को पूर्ण बहुमत से बनता हुआ दिखलाया जा रहा है. जहाँ केजरीवाल मुख्य मंत्री के लिए पहली पसंद माने जा रहे हैं, वहीं कैजरीवाल और किरण बेदी दोनों को अपनी सीट से हारते हुए भी दिखलाया जा रहा है. ओपिनियन पोल सैंपल सर्वे होता है और उसके आधार पर एक अनुमान भर लगाया जा सकता है. अंतिम सत्य तो नतीजे आने के बाद ही पता चलेंगे. लोगों के ओपिनियन भी रोज बदलती रहती है. पिछली बार यानी लोक सभा के चुनाव के समय चाणक्य टी वी चैनेल का सर्वे सबसे ज्यादा सटीक पाया गया था, इस बार वह अभी तक मेरी जानकारी में नहीं दीख रहा है. राजनीतिक पंडित अपनी अपनी तरह से सधी हुई प्रतिक्रिया दे रहे हैं. यह भी सुना गया है कि अपनी स्वतंत्र राय रखने के कारण कुछ जाने माने पत्रकारों को अपनी नौकरी भी गँवानी पड़ रही है. बेबाकीपन सही है, पर हर न्यूज़ चैनेल का एक मालिक होता है, उसकी विचारधारा और समय के साथ अपना हित-साधन भी होता है. सत्ता की भूख हर एक को होती है, वहीं सत्ता की चरण वंदना प्रासंगिक भी होता है.
अब आते हैं बुजुर्ग शांति भूषण के बयान पर- उनका अपना ८८ साल का अनुभव है. कानूनविद हैं, इंदिरा गांधी के खिलाफ राजनारायण को अदालत में जिताने वाले वही महापुरुष है. आज उन्हें अपने ही आँगन का पौधा(आम आदमी पार्टी का मुखिया) ख़राब लगने लगा हैं. वह भी कब? जब फसल पकने वाली है तब. ऐसी क्या मजबूरी हो गयी बुजुर्ग महोदय की, कि अपनी पार्टी का संयोजक और सबसे लोकप्रिय नेता ही उनको नागवार लगने लगा और दूसरी पार्टी में अभी-अभी शामिल हुई बेटी(बेदी) अच्छी लगने लगी. अन्ना बेचारे अपने दोनों प्रिय शिष्यों से नाराज होकर फिर से आंदोलन की राह पर आने की बात करने लगे हैं. माननीय शांति भूषण की बात सही हो सकती है, पर जिस समय उन्होंने अपना विचार, वह भी मीडिया के समक्ष रक्खा, केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को नुक्सान ही पहुंचाने वाली कही जाएगी. क्या उनसे कोई राय मशविरा नहीं लेता था, या वे भी लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे किनारे लगा दिए गए थे. ऐसा कहना जरा मुश्किल है, क्योंकि उन्होंने पार्टी को दो करोड़ रुपये का चंदा दिया है. पार्टी को बनाने और खड़ी करने में उनका महत्वपूर्ण योगदान है. जहाँ केजरीवाल एक भिखारी से पांच रुपये चंदा लेकर सभाओं में चर्चा करते हैं. वहां दो करोड़ माने रखता है. कहीं शांति भूषण जी को अपना पैसा डूबता हुआ तो नहीं लग रहा है. खैर उनकी वे जाने पर जिस पार्टी को उन्होंने खड़ा किया उसको इस तरह प्रतिकूल समय में झकझोड़ने की क्रिया मेरी समझ से परे लग रही है. या तो उनको पहले ही हिदायत देनी चाहिए थी या फिर यह बयान पहले ही देना चाहिए था. अगर उनकी बात न सुनी जाती हो, तो गलती केजरीवाल और उनके सहयोगियों की हो सकती है. वैसे केजरीवाल की सभाओं में भीड़ और विरोध दोनों जारी है. अब ७ और 10 फरवरी की बारी है. देखना यही है कि कौन कितना भारी है.
दूसरी तरफ मोदी और अमित शाह तो चन्द्रगुप्त और चाणक्य की जोड़ी बनकर भारत विजय पर निकल चुके हैं, जहाँ उन्हें हर कदम पर सफलता मिल रही है. उनकी दूरदृष्टि, और राजनीतिक कौशल सराहनीय तो है ही. अगर जनता और देश के हित में अच्छा होता है तो उससे बढ़कर और क्या होना चाहिए. काफी दिनों बाद एक परिवर्तन की लहर चली है और अभी तक वह लहर अपने अस्तित्व में है.
मेरी राय में जितनी आवश्यकता इस देश को मोदी जैसे कर्मठ प्रधान सेवक की है, उतनी ही जरूरत केजरीवाल जैसे लोगों की भी है. एक सशक्त विपक्ष का होना भी लोकतंत्र के लिए जरूरी होता है, अन्यथा शासक तानाशाह हो जाता है. अब भाजपा का यह कहना कि राज्य और केंद्र में एक पार्टी की सरकार होने से ही जनता का फायदा होता है, यह बात बेमानी है. एक समय ऐसा भी था जब अधिकतर राज्यों में और केंद्र में कांग्रेस की ही सरकारें हुआ करती थी. तब क्या असंतोष नहीं था. वैसे दिल्ली अमित शाह और मोदी जी का नाक का सवाल है तो केजरीवाल के लिए अस्तित्व का सवाल. राजनीति में कुछ गलतियों की सजा काफी दिनों तक भोगनी परती है.केजरीवाल की गलती, नितीश कुमार की भयंकर भूलें उन्हें चैन से सोने नहीं देगी. चाहे जो हो, कुछ तो बात है केजरीवाल में जिसे हराने के लिए महाभारत के पात्र अभिमन्यु, कर्ण और दुर्योधन से तुलना भी की जाने लगी है.
आज जब मतदान का प्रतिशत बढ़ रहा है, जनता की भागीदारी बढ़ रही है, लोग जागरूक हो रहे हैं , इसका मतलब है कि लोकतंत्र अपने पूर्ण अस्तित्व में है. ऐसे में अमरीका जैसे बड़े लोकतान्त्रिक और शक्तिशाली देश के प्रधान (राष्ट्रपति) का भारत की गणतंत्र दिवश समारोह में मुख्य अतिथि बनकर आना दोनों देशों के लिए फायदेवाली बात होगी. एक तरफ आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई है, तो दूसरी तरफ ब्यावसायिक सहयोग दोनों देशों के संबंधों को मजबूत करेगा. लेकिन बेचारे ओबामा अचानक परिवर्तित कार्यक्रम के अनुसार प्रेम का प्रतीक ताजमहल को नहीं देख पायेंगे. पिछली बार भी हुमायूँ का मकबरा देखकर संतोष करना पड़ा था, इस बार सऊदी अरब का दौरा …
फिर भी उनकी अभूतपूर्व सुरक्षा ब्यवस्था, अनगिनत सी. सी. टी. वी. कैमरे, भारतीय सुरक्षा कर्मी, सेना के अलावा ओबामा का अपना सुरक्षा घेरा भी कारगर होगा, जिसके अनुसार हर भारतीय सेना के जवान की भी तलाशी ली जायेगी. हमारे भारतीय सेना की स्थिति ऐसी भी हो सकती है …किसी ने सोचा था क्या ? सभी प्रदर्शित किये जानेवाले सामरिक आयुध में कहीं भी गोला बारूद नहीं होगा. अभूतपूर्व होगा वह नजारा जब भारतीय राष्ट्रपति महामहिम प्रणव मुखर्जी के साथ अमरीकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा के साथ भारत के प्रधान सेवक श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी मजबूत सुरक्षा घेरे में एक बुलेटप्रूफ कांच के दीवार के सामने से भारत के राजपथ पर गणतंत्र दिवश का भव्य समारोह देख रहे होंगे.
अभीतक के समाचारों के अनुसार ओबामा और मोदी का इंदिरागांधी अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर गले गले मिलना, राजघाट पर पीपल का पौधा रोपण, श्रद्धांजलि, बापू की मूर्ती और चरखा का भेंट, राष्ट्रपति भवन में २१ तोपों की सलामी से स्वागत, हैदराबाद हाउस के लॉन में चाय पर चर्चा और न्युक्लीअर डील की सारे बाधाएं दूर होना, सबकुछ सराहनीय है. भारत और अमेरिका के बीच नए और मजबूत संबंधों की शुरुआत हुई है. दोनों देश आतंकवाद और पर्यावरण संरक्षण पर भी मिलकर काम करेंगे.
अब चूंकि बसंतपंचमी के आगमन के साथ ज्यादातर हिन्दू, युवक-युवतियां, छात्र-छात्राएं, सरस्वती वंदना में मशगूल हैं, कुछ लोग ओबामा की ही वंदना कर रहे हैं. कुछ लोग ओबामा को कुरुक्षेत्र के इस युद्ध में ओबामा को कृष्णावतार से भी जोड़कर देख रहे हैं. सरस्वती पूजा के दौरान बहुत सारी बच्चियां, किशोरियां, पीत परिधान में, साड़ी सम्हालती हुई, सकुचाती, मुस्काती नजर आती हैं. ऐसे समय में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान की शुरुआत प्रधान मंत्री के द्वारा वह भी हरियाणा के पानीपत से. कुछ लोग इसे पानीपत के चौथी लड़ाई से भी जोड़कर देख रहे हैं. बेटियां सुरक्षित हो, शिक्षित हों, तभी तो वह एक अच्छी बहन, बहू और माँ बनेंगी. धन्य है हमारी मातृभूमि, पुण्यसलिला, सस्य श्यामला. यह धरती माँ … इन्हे बार बार नमन! जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी.
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर