चन्द्रगुप्त मौर्य पर अन्यान्य आलेख मौजूद
है. इतिहास में भी बहुत बातें विवादित हैं, पर जो सच्चाई सबको मालूम है - वह यह कि
महानंद बहुत धनी और घमंडी राजा था. चाणक्य उसकी दान-संघ का अध्यक्ष था. चाणक्य
महानंद के मंत्री शकटार का ही चयन था. शकटार तीक्ष्ण बुद्धि का था, पर घमंडी नन्द ने
उसके किसी चतुर बात(राज्य हित की बात) से ही रुष्ट होकर, परिवार सहित उसे कैद में
डाल दिया था. कैद में भी उसकी तीक्ष्ण बुद्धि से प्रेरित होकर महानंद पुन: उसे
मत्रीपद पर नियुक्त कर दिया.
शकटार के मन में नन्द के प्रति घृणा थी और
नन्द को काले कलूटे लोगों से चिढ़ थी. शकटार ने कूटिनीति के तहत चाणक्य (जो कि काले
ब्रह्मण थे) को नन्द की सभा में उच्चासन पर बैठा दिया, जिसे देखते ही नन्द चिढ़ गया
और उसे गद्दी से उतार दिया. चाणक्य ने उसी समय अपनी चोटी (शिखा) को खोलते हुए कहा
था. “जबतक वह नन्द वंश का नाश नहीं कर लेता, अपनी शिखा नही बांधेगा.”
चाणक्य अन्यमनस्क से चले जा रहे थे... तभी
देखा कि एक लड़का जो पशुओं की चरवाही करते हुए राजा बनने का अभिनय कर रहा था. दूसरे
चरवाहे उसकी प्रजा बने हुए थे. चाणक्य को कौतूहल हुआ. वे राजा बने हुए चन्द्रगुप्त
के पास जाकर बोलते हैं – “राजन हमें दूध पीने के लिए गऊ चाहिए.” राजा बने हुए बालक
चन्द्रगुप्त ने कहा- “वो देखिये, सामने गौएँ चर रही हैं. आप उनमे से जितनी चाहे
अपनी पसंद से ले लें.”
चाणक्य ने इस बालक में राजा की छवि देखी और
उसे राजा बनाने के विचार से अपने साथ में ले लिया. उसे युद्ध कौशल सीखने के लिए
सिकंदर की सेना में भर्ती भी करवा दिया. बाद में यही चन्द्रगुप्त ने नन्द वंश को
समाप्त किया और मगध का राजा बना और पाटलिपुत्र उसकी राजधानी. उसने अपने राज्य का
विस्तार भी किया और चाणक्य को अपना मंत्री/मुख्य सलाहकार बनाकर रक्खा.
चीनी यात्री फाहियान के अनुसार चन्द्रगुप्त
के राज में सभी सुखी थे और अपना वाजिब कर राजा को अवश्य चुकाते थे. राजा भी प्रजा
के सब सुख सुविधा का ख्याल रखते थे. एक दिन फाहियान चाणक्य से मिलने आया. वह
चन्द्रगुप्त के राज्य की खुशहाली का राज जानना चाहता था.
चाणक्य के मेज पर दो मोमबत्तियां थी जिसमे एक
जल रही थी. वह मोमबत्ती के प्रकाश में कुछ लिखने का काम कर रहे थे. फाहियान के आने
पर उन्होंने जलती हुई मोमबत्ती को बुझा दिया और दूसरी जला ली. फाहियान ने पूछा – “महाराज,
आपने ऐसा क्यों किया?”
चाणक्य ने जवाब दिया – “पहली मोमबत्ती राजा
के कोष से प्राप्त हुई थी, जिसे जलाकर मैं राजकाज कर रहा था. अब मैं आपसे
व्यक्तिगत बात कर रहा हूँ, इसलिए अपनी व्यक्तिगत मोमबती जला ली.”
फाहियान ने कहा – मुझे जवाब मिल गया. जहाँ
आपके जैसे ईमानदार मंत्री हों, वहां की प्रजा कैसे खुशहाल न होगी?
पाठक इस दंतकथा में इतिहास का मीन-मेख न
निकालें. मूल भाव को समझने का प्रयास करें!
- - जवाहर लाल सिंह