Sunday 29 May 2016

मोदी जी क्या क्या करेंगे!

मेघालय के छोटे से गांव मावलिननॉन्ग में प्लास्टिक पूरी तरह से प्रतिबंधित है, यहां की सड़क के किनारों पर फूलों की कतारें दिखाई देती हैं। ऐसी ही कई और निराली बातें इस गांव से जुड़ी हुई हैं जो इसे एशिया का सबसे साफ सुथरा गांव बनाती हैं। हालांकि इस जगह की यह प्रतिष्ठा अपने साथ और भी बहुत कुछ लेकर आ रही है। 2003 तक इस गांव में कोई पर्यटक नहीं नज़र आता था। एक ऐसा गांव जहां सड़कें नहीं थी और सिर्फ पैदल ही आया जा सकता था, वहां कोई नहीं आता था लेकिन 12 साल पहले डिस्कवरी इंडिया ट्रैवल मैगेज़ीन के एक पत्रकार की बदौलत यह गांव दुनिया भर में चर्चा का केंद्र बन गया। यही नहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मन की बात में इस गांव का ज़िक्र किया था।
इसके बाद से तो यहां पर्यटकों का तांता और ज्यादा लगने लगा और अब आलम यह है कि इस शांत इलाके में भी प्रदूषण की शिकायतें होने लगी हैं। 51 साल के गेस्टहाउस मालिक रिशोट का कहना है कि उन्होंने गांव के परिषद से बात की है कि वह सरकार से और पार्किंग लॉट बनाने के लिए कहें। सीज़न के वक्त तो एक दिन में करीब 250 पर्यटक इस गांव में आते हैं।
मावलिननॉन्ग को खासी आदिवासियों का घर माना जाता है और बाकियों से अलग यहां पैतिृक नहीं मातृवंशीय समाज है जहां संपत्ति और दौलत मां अपनी बेटी के नाम करती है। साथ ही बच्चों के नाम के साथ भी उनकी मां का उपनाम जोड़े जाने की प्रथा है। इस गांव के हर कोने में आपको बांस के कूड़ेदान नज़र आ जाएंगे और समय-समय पर स्वयंसेवी सड़कों को साफ करते दिखाई देंगे। बनियार मावरोह अपने गांव और परिवार के बारे में बताती हैं, ‘हम रोज़ सफाई करते हैं क्योंकि हमारे पूर्वजों ने हमें सिखाया है कि गांव को साफ सुथरा रखने से शरीर स्वस्थ रहता है।’ मोदी जी ने भियही कहा है किसफाई से गरीबों को ही फायदा है.न सफाई के प्रति मावलिननॉन्ग की यह लगन दरअसल 130 साल पहले शुरू हुई जब इस गांव में हैजे की बीमारी का आतंक छा गया था। किसी भी तरह की मेडिकल सुविधा न होने की वजह से इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए सिर्फ सफाई ही एकमात्र तरीका बच गया था। यहांके निवासी खोंगथोहरेम का कहना है ‘क्रिश्चियन मिशनरी ने हमारे पूर्वजों से कहा था कि तुम सफाई के जरिए ही हैजे से खुद को बचा सकते हो। फिर खाना हो, घर हो, ज़मीन हो, गांव हो या फिर आपका शरीर सफाई ज़रूरी है।’ यही वजह है कि घर घर में शौचालय के मामले में भी यह गांव सबसे आगे है और 100 में से लगभग 95 घरों में यहां शौचालय बना हुआ है।
शनिवार को प्रधान मंत्री महोदय सुबह सुबह मावलिननॉन्ग गांव पहुँच गए और वहां के आदिवासियों के साथ ऐसे घुल-मिल गए जैसे वे उनके पुराने साथी हों. उन्होंने वहां पारम्परिक ड्रम भी बजाया और थालनुमा घंटी भी बजाई. युवा कलाकारों के साथ घुल-मिलकर उनका उत्साह बढ़ाया. हमने उन्हें जापान में भी ड्रम बजाते देखा था. स्वच्छता अभियान में झाड़ू लगाने की शुरुआत उन्होंने की और उनके देखा-देखी कई हस्तियों ने झाड़ू के साथ फोटो अवश्य खिंचवाई. उन्होंने काशी के अस्सी घाट पर कुदाल भी चलाया और एक बार नहीं, कुल पंद्रह बार …वे पसीने-पसीने हो गए थे. पर सब काम वही करें यह तो हो नहीं सकता न! विदेशों में घूमकर भारत की छवि को सुदृढ़ कर रहे हैं, विभिन्न समझौतों पर हस्ताक्षर कर रहे हैं, निवेश का आमंत्रण दे रहे हैं, यानी एक साथ विदेश, वित्त और वणिज्य मंत्रालय का काम भी सम्हाल रहे हैं. भाजपा में उनके जैसा करिश्माई नेता अभी दूसरा दीख नहीं रहा अत: प्रचार मंत्रालय और विज्ञापन मंत्रालय भी खुद सम्हाले हुए हैं. सामाजिक समरसता और साम्प्रदायिक का संतुलित वातावरण बनाने का खुद हरसम्भव प्रयास कर रहे हैं वो तो कुछ इनके छुटभैये नेता बीच बीच में माहौल खराब कर देते हैं जिसे उन्हें ही सम्हालना पड़ता है. परीक्षाओं और परीक्षा के परिणाम के समय वे विद्यार्थियों से संवाद करते हैं. किसानों से संवाद करते हैं यानी मानव संसाधन और कृषि मंत्रालय का भी जिम्मा खुद ले लेते हैं. और कितना गिनाएं वैज्ञानिकों, डॉक्टरों, सामाजिक संस्थाओं सबको तो वही सम्हाले हुए हैं. हाँ रक्षा मंत्रालय को पर्रिकर साहब पर छोड़े हुए हैं और पर्रिकर साहब उसे भली भांति सम्हाले हुए हैं.
नेता रास्ता दिखलाता है और लोग उस रास्ते पर चलते हैं. चाहे महात्मा गांधी का दांडी मार्च हो या असहयोग आंदोलन. जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति का नारा हो या अन्ना का लोकपाल आंदोलन. इन सबने एक रास्ता दिखाया और लोग उसपर चल पड़े. जयप्रकाश आंदोलन से जुड़े नेता आज अपनी-अपनी जगह नाम कमा रहे हैं. अन्ना आंदोलन से जुड़े लोगों में से कोई मुख्य मंत्री बना, कोई केंद्र सरकार में मंत्री बना तो किसी ने उप राज्यपाल तक की कुर्सी सम्हाल ली. चाहे जो भी कारण रहे हों, कांग्रेस का पतन हुआ और भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र में सत्ता में आयी. अभी भाजपा की कई राज्यों में सरकारें हैं. उन राज्यों के मुखिया मोदी जी को अपना आदर्श मानते हैं, बातों में, भाषणों में, सपनों में भी शायद मोदी जी का गुणगान करते रहते हैं. पर काम कितना कर पाते हैं, यह तो उनके राज्य के हालात बतला रहे हैं. मैं यह नहीं कह रहा हूँ की हालात नहीं बदले. अब जैसे उमा भारती कह रही हैं कि दो साल में गंगा विश्व की साफ़ सुथरी नदियों में शुमार होगी. पर पिछले दो सालों में उन्होंने क्या किया, यह नहीं बतला पा रही हैं. कुछ लोग कह रहे हैं कि गंगा साफ करना है तो उनकी सहायक नदियों को पहले साफ़ करना होगा. गंगा में जा रहे प्रदूषित जल का सही निस्तारण करना होगा. वह हो रहा है क्या? मोदी जी ने तो अस्सी घाट पर कुदाल चलाकर ऐसा साफ़ करावा दिया कि अब वहां का नजारा देखते ही बनता है.
शौचालय बनाए जा रहे हैं, बने भी हैं. उनका उचित रख रखाव हो रहा है क्या? स्वायल (Soil) हेल्थ कार्ड, किसान फसल बीमा योजना, सिंचाई योजना, किसानों की उपज का सही दाम मिला रहा है क्या? अभी हाल ही में खबर आयी थी कि एक किसान ने ९४५ किलो प्याज नासिक की मंडी में बेंचा तो उसे एक रुपये का शुद्ध लाभ हुआ. क्या इसी तरह किसानों की आमदनी दुगनी हो पाएगी. सबसे बुरा हाल किसानों का है, वे अन्नदाता की उपाधि तो पा गए, पर खुद कितने बेहाल है? किसानों की आत्महत्या का दौर अभी भी जारी है. यह सभी काम मोदी जी नहीं करेंगे. हम सबको मिलजुलकर करना होगा. जैसे कि कैलाश खेर, अमिताभ बच्चन अपनी अपनी कलाओं के माध्यम से लोगों को जागरूक कर रहे हैं. अरुण जेटली जी, नितिन गडकरी, सुरेश प्रभु, पीयूष गोयल आदि अन्य मंत्री भी अपना अपना काम काम कर रहे हैं. हाँ राम विलाश पासवान एक तो अपना काम ठीक से नहीं कर रहे हैं उल्टे बयान दे देते हैं कि हम भारतीय लोग दाल ज्यादा खाने लगे हैं. यह क्या कोई तर्क है? दाल ज्यादा खपत हो रही है तो आपको उसका प्रबंध तो करना होगा या तो आप दाल उपजाने में किसानों की मदद करें या विदेशों से दाल आयात करें. किसानों को जिस फसल में फायदा होगा वही तो वे उपजायेंगे. विकल्प तलाशने होंगे. मांग और आपूर्ति को दुरुश्त करना होगा नहीं तो फिर इतनी उपलब्ध सूचनाओं का क्या फायदा? आज माउस क्लिक, या उँगलियों के इस्तेमाल मात्र से सारी सूचनाएं उपलब्ध हो सकते है तो फिर उनका सही उपयोग तो होना ही चाहिए न!
आपका हमारा काम है कि अपना टैक्स सही वक्त पर जमा करें, सामान खरीदते समय रसीद की मांग करें. अपने जगह को साफ सुथरा रक्खें और साफ सुथरा रखने में मदद करें, प्रोत्साहित करें कूड़े को इधर-उधर न फेंक कर सही जगह पर जमा करें और उसे समयानुसार स्थानांनतरित करें. या तो प्लास्टिक/पॉलिथीन का प्रयोग कम से कम करें या उसे पुनरुपयोग करें .. टाटा स्थित जुस्को जो टाटा की ही सहायक कंपनी हे, रद्दी प्लास्टिक/ पॉलीथिन का पुनरुपयोग कर सड़कें बना रही है, इससे कोलतार की बचत हो रही है, साथ ही सड़कें ज्यादा मजबूत बन रही है और बरसात के दिनों में भी कम क्षतिग्रस्त हो रही है.
एक प्रतिष्ठित कंपनी की बात बताने जा रहे हैं, यहाँ कर्मचारियों आधिकारियों के लिए नाश्ते/खाने का कैंटीन में उचित प्रबंध है. अगर काम के दबाव के कारण कैंटीन नहीं जा सके तो पैक्ड फ़ूड भी मंगवा सकते है जो आपके कार्य स्थल तक पहुंचा देगा. इससे दूसरों को रोजगार भी मिल रहा है. पर इतना कर्तव्य तो हमारा बनता है कि या तो हम खाना को बर्बाद न करें या बचे हुए उच्छिष्ठ खाद्य सामग्री और पैकिंग में इस्तेमाल की गयी सामग्री को सही जगह पर रक्खें ऐसा नहीं कि अपने कार्य स्थल को ही गन्दा कर दें. बहुत सारे लोग चाय के कप को ही डस्ट बिन जैसा इस्तेमाल कर लेते हैं और अपनी टेबुल पर ही रखे रहते हैं. यह गन्दी आदत है और इसका खामियाजा आपके साथ आपके सहकर्मी को भी भुगतना पड़ेगा. क्या मावलिननॉन्ग गांव से हम इतना भी नहीं सीख सकते?
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

Saturday 21 May 2016

असम चुनाव के रणनीतिकार

चुनाव जीतने के लिए अब केवल राजनीतिज्ञ के कोरे वादे से काम नहीं चलने वाला है. अब तकनीक के साथ कुछ नए नारे बनाने होते हैं। प्रचार में तकनीक का सहारा लेना होता है। सत्तासीन पार्टी की बाल के खा भी उधेड़ने होते हैं! और यही सब काम किया असम चुनाव के इलेक्शन स्ट्रैटेजिस्ट रजत सेठी ने। मोदी को लोकसभा चुनाव में जीत दिलाने वाले प्रशांत किशोर के कांग्रेस से जुड़ने के बाद बीजेपी को नया किंगमेकर मिल गया है। असम में मिली जीत में इलेक्शन स्ट्रैटेजिस्ट रजत सेठी का अहम रोल बताया जा रहा है।  29 साल के ग्रेजुएट रजत ने बीते साल नवंबर में असम के लिए कैम्पेन शुरू किया था। उनकी टीम की मेहनत का नतीजा यह रहा कि बीजेपी अब नॉर्थ ईस्ट में पहली बार किसी राज्य में सरकार बनाने जा रही है। 126 सीटों वाली असम विधान सभा में बीजेपी+ को 86, कांग्रेस को 26, एआईयूडीएफको 13 और अन्य को 1 सीटें मिली हैं। BJP के स्ट्रैटजिस्ट्स की टीम 6 महीने में 6 लोगों के साथ मिलकर 20 घंटे काम कर असम में BJP को दिलाई जीत दिलाई है ऐसा कहा जा रहा है....
कानपुर के रहने वाले रजत सेठी ने आईआईटी खड़गपुर से पढ़ाई की है। बाद में उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पब्लिक पॉलिसी में ग्रेजुएशन किया। उनके परिवार की संघ से करीबी का रिश्ता रहा है। 2012 में पढ़ाई के लिए अमेरिका गए।  2014 में रजत हार्वर्ड इंडिया एसोसिएशन के लिए इवेंट्स कराते थे। एक बार जब राम माधव वहां गए तो वे उनके संपर्क में आए। 2015 में पढ़ाई पूरी करने के बाद माधव के कहने पर रजत भारत लौटे और बीजेपी से जुड़ गए।
रजत ने टीम बनाने की शुरुआत की। 6 लोगों की टीम में 4 IIT खड़गपुर के पास आउट थे। 2 मेंबर ऐसे थे जो प्रशांत किशोर की टीम में रहे थे। उन्होंने नवंबर 2015 से असम में काम शुरू किया। बीजेपी के लिए रजत ने 'असम निर्माण' का नारा दिया। हर दिन 20 घंटे काम करते हुए पूरी टीम राम माधव और अमित शाह के कॉन्टेक्ट में रहती थी। टीम ने पब्लिक के बीच डायलॉग सीरिज चलाई, टी-लेबर्स, एजुकेशन, स्किल डेवलपमेंट और सोशल वेलफेयर जैसे मुद्दों को उठाया। वर्ल्डबैंक में काम कर चुके रजत ने बताया, ''हमारी स्ट्रैटजी थी कि हर दिन कुछ नया करते हुए कांग्रेस या उनके लीडर पर सीधे टारगेट करें। ताकि कांग्रेस बैकफुट पर रहकर सिर्फ जवाब दे सके। इसका फायदा हमें ऐसे मिला कि कांग्रेस का कैम्पेन आचार संहिता लागू होने के सिर्फ एक महीने पहले ही शुरू हो पाया।''  रजत ने बताया कि हार्वर्ड में कोर्स के दौरान प्रोजेक्ट वर्क के लिए उन्होंने कुछ महीनों तक हिलेरी क्लिंटन के लिए कैम्पेन किया है।  उनके कोर्स में कैम्पेन मैनेजमेंट का एक प्रोजेक्ट था। इस दौरान उन्हें अमेरिका के इलेक्शन मैनेजमेंट को समझने का मौका मिला।
कैम्पेन स्ट्रैटजी रजत की 6 लोगों की टीम में आशीष सोगानी, महेंद्र शुक्ला, शुभ्रास्था, शिखा, और आशीष मिश्रा थे। शुभ्रास्था पहले प्रशांत की टीम में थीं। 2015 में बिहार में महागठबंधन को लेकर उनके प्रशांत से मतभेद हुए और फिर वे उनकी टीम से अलग हो गईं। टीम की सीनियर मेंबर शुभ्रास्था ने मीडिया से बातचीत में बताया कि मोदी ने एक बार अपने भाषण में गरीबों को 2 रुपए प्रतिकिलो चावल देने की स्कीम का जिक्र किया था। इस स्कीम की काफी अपील थी। वहीं, अमित शाह ने अपने बयानों में अहम मुद्दे उठाए। ये सारी चीजें हमारी टीम ने ड्राफ्ट की और सजेस्ट की थीं। शुभ्रास्था ने बताया, ''हमने 175 से ज्यादा RTI लगाकर गोगोई के खिलाफ माहौल का फायदा उठाया। पार्टी के टॉप लीडर्स तक हमारे लिए एक मैसेज पर एक्सेस था। इसके चलते हर स्टेप पर मिले उनके सपोर्ट ने विनिंग स्ट्रैटजी को मजबूती दी।''
सबसे पहले इन लोगों ने बूथ से लेकर हर विधान सभा सीट का एनालिसिस किया और वहां के मुददों और जरूरतों को समझकर एक विजन डॉक्युमेंट बनाया। हर सीट के लिए माइक्रो मैनेजमेंट किया। सोशल मीडिया पर ये कांग्रेस से बहुत आगे रहे। फेसबुक के जरिए इन्होंने करीब 30 लाख लोगों तक अपनी पहुंच बनाई और वाट्सएप के जरिए भी यूथ से कॉन्टेक्ट किया। जबकि फेसबुक पर कांग्रेस केवल 5 से 10 हजार लोगों तक सिमटी रही।
एनालिसिस और माइक्रो मैनेजमेंट के बाद ही एजीपी के साथ एलायंस करने का फैसला किया गया। हालांकि असम बीजेपी के लोकल लीडर्स इसके खिलाफ थे। टीम ने एनालिसिस में बताया कि 2014 के लोक सभा चुनाव में एजीपी ने करीब 3 से 4 फीसदी वोट हासिल किया थे। तर्क दिया कि लोक सभा चुनाव में जब ये पार्टी इतना वोट हासिल कर सकती है, तो असेंबली इलेक्शन में तो और भी अच्छा कर सकती है।
चुनावों से पहले सर्बानंद सोनोवाल को सीएम पद का कैंडिडेट बनाया जाना भी इस टीम की स्ट्रैटजी का ही हिस्सा था। असम में बीजेपी पर आरोप लगता था कि यह हिन्दी भाषी स्टेट्स की पार्टी है। इसकी काट के लिए टीम ने एक ट्राइबल लीडर को सीएम पद का चेहरा बनाने की राय दी। तरुण गोगोई के करीबी हिमंता बिस्वा सर्मा को तोड़ना और उनसे जमकर रैली करवाने का फैसला भी बेहद फायदेमंद रहा। हेमंत बिस्वा ने बाद में राहुल गाँधी की खिल्ली भी उड़ाई हेमंत ने कहा – राहुल से मिलना उनके कुत्ते से मिलने के बराबर था 
सर्मा ने 2 हफ्तों में 200 रैलियां की। इन रैलियों में नारा लगाया जाता था कि 'असम में आनंद लाना है, तो सर्बानंद को लाना है'। इसके अलावा बांग्ला देशी मुस्लिमों का मुद्दा उठाना भी फायदेमंद रहा। रजत का कहना है कि इस मुद्दे की वजह से असम के मुस्लिमों का वोट उन्हें मिला।
बीजेपी के स्ट्रैटजिस्ट की टीम में शामिल आशीष मिश्रा ने मीडिया को बताया, ''हमने रोज 20 घंटे तक काम कर डाटा जुटाया। मुद्दे उठाने के लिए कई आरटीआई फाइल कीं। सबसे खास बात यह थी कि इलेक्शन कैम्पेन में सर्बानंद सोनोवाल के पोस्टर के साथ कांग्रेस कैंडिडेट तरुण गोगोई की बजाय कांग्रेस की अलायंस पार्टी AIUDF  के नेता बदरुद्दीन अजमल की फोटो लगाई जाती थी। इसके पीछे स्ट्रैटजी यह थी कि पूरे कैम्पेन में गोगोई को वेटेज न मिले और जनता के बीच उनकी रिकॉल वैल्यू कम रहे।''
शिखा का कहना है, हम यूपी में BJP के लिए कैंपेन के लिए तैयार हैं। आखिरी फैसला पार्टी हाई कमान को करना है। हमारी स्ट्रैटजी थी कि कांग्रेस खुद कुछ नया कैंपेन करने की जगह हमारे कैंपेन का रिस्पॉन्स एंड ही बनी रहे। और ऐसा ही हुआ।
इसके अलावा आरएसएस के समर्पित कार्यकर्ता भी काफी दिनों से असम में भाजपा के लिए जमीन तैयार कर रहे थे. वे जमीनी स्तर के लोगों से मिलकर भाजपा के पक्ष में माहौल बना रहे थे. इन सबका लाभ भाजपा को मिला. प्रधान मंत्री ने रैलियों में असम के वेश भूषा पहनकर वहां के लोगों से आत्मीयता स्थापित की.
अब आइए आपको बताते हैं रजत के बारे में दस बातें- 1. रजत सेठी कानपुर के रहने वाले हैं.
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इन्‍होंने आरएसएस के स्‍कूल शिशु मंदिर से पढ़ाई की. 3. आईआईटी खड़गपुर से सेठी ने बीटेक किया. 4. खड़गपुर में इन्‍होंने एक हिंदी सेल की शुरुआत की. 5. इसके बाद अमेरिका में एमआईटी और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पब्लिक पॉलिसी में इन्‍होंने पढ़ाई की. 6. सेठी ने एक आईटी कंपनी भी डाली, जिसे बाद में इन्‍होंने बेच दिया. 7. राम माधव से मुलाकात के बाद और उनके कहने पर सेठी ने बीजेपी ज्‍वॉइन की. 8. राम माधव ने सेठी को 32 जिलों, 25 हजार बूथों पर काम करने के लिए कहा. 9. सेठी की टीम ने गुवाहाटी को अपना हेडक्‍वार्टर चुना और 20-20 घंटे काम किया. 10. 400 युवाओं को अपनी टीम में इन्‍होंने शामिल किया.
बंगाल में ममता दीदी का गरीबों, मुसलमानों, बंगलादेशियों के प्रति झुकाव और उनके हित में किये गए काम को लोगों ने पसंद किया. यही हाल जयललिता के बारे में भी कहा जाता है. उन्होंने भी तमिलनाडु की जनता के लिए सरकारी खजाने से खोब धन वर्षा की. लोगों को उनके जरूरत के सामन मुहैया कराये. यानी यहाँ ये दोनों नेत्री जनता की पसंद बने और दुबारा चुनकर सत्ता में लौटीं. केरला मे परिवर्तन चाहिए था इसलिए वहां की जनता ने कांग्रेस के बजाय लेफ्ट को चुना. पोंडुचेरी छोटा राज्य है, वहां कांग्रेस अपनी साख बचाने में कामयाब रही.

सारांश यही है कि, एक तो आपको परफॉर्म करना होगा, जनता की आकाँक्षाओं की पूर्ति करनी होगी, दूसरा उनके बीच बिश्वास कायम करना होगा तीसरा उनके बीच जाकर उनकी मांग को सुनना होगा और सत्तारूढ़ दल के विकल्प के रूप में अपने दल को पेश करना होगा आजकल सोसल मीडिया, मीडिया मैनेजमेंट, ओपिनियन पोल सबका अपना अपना अहम रोल है मोदी नीत भाजपा सरकार इन सारी तकनीकों का लाभ ले रही है तभी इनका आत्मबिस्वास बढ़ा है अब आगे यु पी और पंजाब के चुनाव हैं, देखा जाय वहां क्या होता है.... जनता जनार्दन ही सर्वोपरि है मेरा देश बदल रहा है. आगे बढ़ रहा है .... जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर       

Saturday 14 May 2016

भेदभाव को जड़ से मिटाना होगा

19 फरवरी 2012 को डिसेबल और एक्टीविस्ट जीजा घोष कोलकाता से गोवा एक कांफ्रेंस में हिस्सा लेने जा रही थीं। वे स्पाइस जेट के विमान में सवार हुईं लेकिन उड़ान भरने से पहले उन्हें विमान से उतार दिया गया। बाद में उन्हें पता चला कि कैप्टन ने डिसेबल होने की वजह से उन्हें विमान से उतारने के निर्देश दिए थे। इसकी वजह से वे कांफ्रेंस में भाग नहीं ले पाईं और उन्हें मानसिक रूप से आघात पहुंचा।
देश भर में निःशक्त (डिसएबल्ड) लोगों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने गहरी चिंता जाहिर की है। सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में एक निःशक्त कार्यकर्ता को विमान से नीचे उतारने के मामले में स्पाइस जेट को दो माह में दस लाख रुपये का मुआवजा देने के आदेश दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने अमेरिकी किताब ‘NO PITY’ का जिक्र किया, जिसमें कहा गया है कि ‘Non disabled Americans don’t understand disable ones’, (वह अमेरिकन जो निःशक्त नहीं है, किसी निःशक्त व्यक्ति की समस्या को नहीं समझ सकता।) लेकिन यह बात पूरी दुनिया पर लागू होती है। हिंदी में भी कहावत है – जाके पैर न फटे बिवाई, सो क्या जाने पीड़ पराई । भारत में निःशक्त लोगों को लेकर कई कानून हैं और कई मानवाधिकार संस्थाएं काम कर रही हैं, लेकिन अब भी इसको लेकर काफी सुधार की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डिसेबल लोगों को भी वही अधिकार हैं जो सामान्य लोगों को हैं, लेकिन ज्यादातर सामान्य लोगों को लगता है कि वे बोझ हैं और कुछ कर नहीं सकते। जबकि हकीकत यह है कि निःशक्त होने के बावजूद वे अपनी जिंदगी जीते हैं और किसी पर बोझ नहीं बनते। उन्हें भी आम लोगों की तरह अपना जीवन गौरवपूर्ण तरीके से जीने का हक है। जीजा घोष इसी का उदाहरण हैं कि डिसेबल होते हुए भी वे एक्टीविस्ट के तौर पर काम कर रही हैं।
स्पाइसजेट ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी थी कि जीजा ने नियमों का पालन नहीं किया था। टिकट बुकिंग के वक्त ही यात्री को बताना चाहिए कि वह डिसेबल है लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि वैसे तो डिसेबल के लिए कमेटी ने अपनी सिफारिशें दी हैं लेकिन कोर्ट को लगता है कि इसमें सुधार की जरूरत है। कोर्ट की राय है कि सरकार को सभी हवाई अड्डों पर निःशक्त लोगों के लिए तमाम आधुनिक और स्टेंडर्ड सामान लगाना चाहिए। इसके अलावा व्हील चेयर को विमान के भीतर भी जाने की अनुमति मिलनी चाहिए। इसके अलावा क्रू को भी सही ट्रेनिंग देनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के बाद पत्रकारों ने जब जीजा घोष से संपर्क किया और उसकी प्रतिक्रिया जाननी चाही – तो जीजा घोष का यही कहना था कि – जिन्दगी में कठिनाइयाँ आती हैं, पर उन कठिनाइयों का सामना करना चाहिए, उनपर विजय प्राप्त करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। किसी भी हालत में हार नहीं माननी चाहिए। यह सबक है उन सभी लोगों के लिए जो छोटी-मोटी कठिनाइयों से हार मान जाते हैं और आत्म-हत्या जैसा कायराना कदम उठा लेते हैं।
ऐसे बहुत सारे उदाहरण है – जिनमे नृत्यांगना सोनल मान सिंह, सुधा चंद्रन, संगीतकार रविंदर जैन (जो देख नहीं सकते) प्रमुख है। इन्होने अपनी कमजोरी को कभी जाहिर ही नहीं होने दिया। राष्ट्रीय स्तर की वोलीबाल खिलाड़ी अरुणिमा सिन्हा को कुछ लुटेरों ने ट्रेन से नीचे फेंक दिया था, जिसके चलते उसका एक पैर नकली लगाया गया फिर भी उसने २१ मई २०१३ को एवरेस्ट फतह कर ली। पिछले साल UPSC की परीक्षा में विकलांग इरा सिंघल ने टॉप किया था। कहा जाता है कि वैज्ञानिक आइन्स्टीन मी मानसिक रूप से मंद बुद्धि ही थे।
तात्पर्य यही है कि बहुत सारे मानसिक या शारीरिक विकलांग लोग कई क्षेत्रों में ख्याति अर्जित कर चुके हैं। हमारा समाज उन्हें उपेक्षित नज़रों से देखता है, जो किसी भी तरह से जायज नहीं है। हमारे प्रधान मंत्री श्री मोदी ने हाल ही में कहा है कि जो भी अशक्त लोग हैं उनमे एक विशेष प्रतिभा होती है, इसीलिए उन्होंने अशक्तों/विकलांगों को नया नाम दिया – दिव्यांग!
हमारे समाज में भेदभाव की भी पुरानी परंपरा रही है। जाति, लिंग, धर्म, भाषा, रंग, कर्म, क्षेत्र आदि के नाम पर भेदभाव किया जाता रहा है। शिक्षित और विकसित जगहों में ये भेदभाव कम हुए हैं। विभिन्न सामाजिक/राजनीतिक स्तर पर भी इनपर समय-समय पर सुधार के प्रयास किये गए हैं, पर कुछेक तत्व बीच-बीच ऐसे मुद्दे उभार देते हैं। इसे किसी भी तरीके से सही नहीं ठहराया जा सकता है।
हम सबको प्रकृति ने समान अवसर प्रदान किये हैं, फिर भी किसी कारण वश हम प्रकृति का पूरा लाभ नहीं ले पाते, कभी आकस्मिक दुर्घटना/ बीमारी के शिकार होकर असामान्य स्थिति में पहुँच जाते हैं। कुछ लोग विकलांग ही पैदा भी होते हैं, पर इसं सबमे उनका अपना दोष क्या है, जिन्हें हम भेदभाव या हीन नजरों से देखते हैं। एक बात और सोचने समझने वाली है हमारी पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं हैं, पर जब ये आपस में मिल जाती हैं तो मुट्ठी बन जाती हैं और तब इनमे ज्यादा ताकत आ जाती है। उसी प्रकार हमारे समाज में विभिन्न तबके के लोग हैं जिनसे मिलकर ही हमारा समाज समृद्ध बनता है। हमारे अपने शरीर में ही विभिन्न प्रकार के अंग हैं और सबका अपना अलग महत्व है। परिवार में भी कोई सदस्य कमजोर होता है। हमारे माता पिता भी वृद्धावस्था में कमजोर हो जाते । उन्हें भी सहारे की जरूरत होती है, शारीरिक के साथ साथ मानसिक रूप से भी।
महिलाओं को सबसे पहले कमजोर समझा गया और उन्हें दबाकर रखने का हर संभव प्रयास हुआ, पर आज देखिये उन सफल महिलाओं को जो हर क्षेत्र में अपना परचम लहरा रही हैं। रंग के आधार पर भी बहुत बार भेदभाव होता रहा है। गोरे लोग काले लोगों को पसंद नहीं करते। अब जरा सोचिये दिन के उजाले में हम सारा उपयोगी काम करते हैं, पर आराम से सोने के लिए अंधेरी काली रात ही चाहिये। कर्म के आधार पर विभिन्न जातियों का सृजन हुआ, पर सबका अपना अपना अलग महत्व है. सभी जातियों से मिलकर ही एक सम्पूर्ण समाज बनता है, नहीं? भाषा और बोलियाँ भी हमारी अपनी-अपनी पहचान है। अलग-अलग क्षेत्र, समतल मैदान, खेत, नदियाँ, पहाड़, जंगल, उपवन सबकुछ हमारी जरूरत के हिशाब से ही बने और बनाये गए हैं। इसके अलावा एक और भेद इधर विकसित हुआ है। वह है राष्ट्र-भक्ति का भाव। निश्चित ही हम सबके अन्दर राष्ट्र और मातृभूमि के प्रति प्रेम होना चाहिए। प्रेम प्रदर्शन करने का तरीका अलग अलग हो सकता है। पर एक ख़ास तरीका जो एक वर्ग, समुदाय कहे वही बेहतर या सर्वश्रेष्ठ है, उस पर बहस और विचार विमर्श की गुंजाईश है। हमारे विचार अलग अलग हो सकते हैं। हमारी मान्यताएं भी अलग अलग हो सकती हैं, पर सबका उद्देश्य एक ही होना चाहिए। वह है मानव प्रेम, देशप्रेम और वसुधैव कुटुम्बकम का भाव, विश्व बंधुत्व का भाव, सर्वे भवन्तु सुखिन: का भाव, भाईचारा और आपसी प्रेम का भाव।
अगर कोई कमजोर है, अशक्त है उसे हमारी मदद की जरूरत है तो मदद की जानी चाहिए. बच्चे को गोद में उठाने के लिए माँ को झुकना पड़ता है. उसी तरह निशक्तों, दलितों, पिछड़ों को उठाने के लिए हमें थोड़ा सा त्याग करना होगा। नियम-कानून हैं, पर हमारे अन्दर वह भाव भी होने चाहिए। अंत में एक मशहूर गीत की पंक्तियाँ – तुम बेसहारा हो तो किसी का सहारा बनो. तुमको अपने आप ही सहारा मिल जाएगा.
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.