Sunday 22 November 2015

जनता आखिर क्या करे?

डिजिटल इंडिया, मेक इन इण्डिया, शाइनिंग इण्डिया, स्किल इंडिया, स्वच्छ भारत, हिन्दू राष्ट्र, विश्वगुरु बनता हुआ भारत, बुलेट ट्रेन, स्मार्ट सिटी, सबको अपना घर, सबका साथ सबका विकास, अबकी बार मोदी सरकार, कांग्रेस मुक्त भारत, भ्रष्टाचार मुक्त भारत, २४ घंटे बिजली, साफ़ सुथरी सड़कें, शिक्षित भारत, संपन्न भारत, नमामि गंगे, गोरक्षा, जन-धन, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, सेल्फी विथ डॉटर ….. आदि सपना बहुत अच्छा है. पर, इसका कुछ असर धरातल पर तो दिखना चाहिए. सचमुच क्या भारत में उसके कुछ लक्षण दिखने शुरू हुए हैं. क्या कानून का राज स्थापित हो गया है? क्या सरकार पूर्ण पारदर्शिता के साथ काम कर रही है? क्या महिलाएं सुरक्षित महसूस कर रही हैं? क्या पढ़े लिखे बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिलने में तेजी आयी हैं? क्या विदेशी निवेश आना शुरू हुआ है? क्या नए उद्योग धंधे स्थापित होने शुरू हो गए है? क्या जाति-पाति या धर्म के आधार पर भेद करना कम हो गया है? … चीजों के दाम कम हुए या बढे? जितनी उम्मीद थी और जिस उत्साह के साथ जनता ने मोदी सरकार को स्पष्ट जनादेश दिया था, उसके अनुरूप कुछ खास परिवर्तन गत डेढ़ साल में नहीं दिखा…. बिहार में आपने सभी चाल चल कर देख लिए, सभी चालें उल्टी पड़ गयी, क्योंकि आपने सिर्फ विरोधियों को गाली दी, अपने डेढ़ साल की उपलब्धियों की चर्चा नहीं की. आपने भी गलत लोगों के टिकट दिया, जिसका आरोप आपके साथी ही लगाते रहे. आपने नीतीश, लालू, सोनिया, राहुल को जितनी भी गालियां दी, उसका असर यह हुआ कि उनके प्रति जनता की सहानुभूति बढ़ गयी. नीतीश के काम बोलते हैं और लालू के जुबान. आपने भी लालू के जुबान में बात की …आपसे ऐसी अपेक्षा न थी. फिर आपमें और लालू प्रसाद में अंतर क्या रहा? अब परिणाम सामने है. जिस जनता ने आपको अभूतपूर्व बहुमत से सत्ता सौंपी थी, उसी जनता ने आपको नकार दिया और दूसरे विकल्प का चुनाव किया. अब जो भी परिणाम है, सामने है. नीतीश का कद ऊंचा हुआ और देश में एक नया विकल्प मोदी विरोध में पनपने लगा है. आपने नीतीश को अहंकारी कहा था, पर अहंकार आपमें और आपके सिपहसालारों में कूट-कूट कर भरा था. जनता सब कुछ देखती है और उपलब्ध बेहतर विकल्प का चुनाव करती है. जनता को कम-से-कम दाल-रोटी तो चाहिए होता है न! आपने दाल, प्याज, सरसों तेल एवं अन्य जरूरी सामानों के दाम बढ़ने दिए. जमाखोरों को बहुत बाद में पकड़ा, आयात भी देर से किया. तब भी परिणाम बहुत सकारात्मक नहीं निकला. आप गैर जरूरी मुद्दे उठाते रहे और आपकी सारी मिहनत बेकार चली गयी.
तीसरी बार सत्ता सम्हालने के तुरंत बाद नीतीश कुमार ने सर्वप्रथम कानून ब्यवस्था पर ही मीटिंग की और अधिकारियों को सख्त निर्देश दिया कि कानून तोड़नेवाले बख्से नहीं जायें, चाहे वह व्यक्ति किसी भी पद पर क्यों न हो! उप मुख्य मंत्री तेजस्वी के बारे में सवाल उठाने लगे तो तेजस्वी ने भी अपनी सफाई पेश करते हुए कहा कि वे नीतीश कुमार के विकास कार्यों में हर सम्भव सहयोग करेंगे. किसी भी किताब के कवर को देखकर उसके अंदर के तथ्य का अंदाजा लगाना गलत है.
अब मैं कुछ वरिष्ठ पत्रकारों की राय प्रस्तुत कर रहा हूँ. हरिशंकर ब्यास लिखते हैं-
बिहार में नीतीश कुमार का मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेना उनकी राष्ट्रीय भूमिका की तैयारी का एक संकेत है। शपथ ग्रहण में जिस तरह से देश भर के नेताओं का जमावड़ा लगा, उससे अपने आप नीतीश की छवि अखिल भारतीय नेता की बनी है। लेकिन यह संशय बना हुआ है यह दूसरे मोर्चे की राजनीति है या तीसरे मोर्चे की! नीतीश कुमार की रणनीति से जुड़े नेताओं का कहना है कि नीतीश कुमार के ब्रांड को दूसरे और तीसरे मोर्चे की राजनीति से ऊपर रखना है, इसलिए उन्होंने इस समारोह को कांग्रेस का समारोह भी बनने दिया। लोकसभा चुनाव में हार के बाद यह पहला मौका था, जब कांग्रेस देश भर में अपने कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ा सकती थी। इस बात को समझते हुए भी कि कांग्रेस इस जीत से अपनी ब्रांडिंग कर रही है. बिहार की आगे की राजनीति और केंद्र की राजनीति के लिए यह जरूरी है। इसके अलावा उन्होंने तीसरे मोर्चे की संभावित पार्टियों में लेफ्ट सहित कई पार्टियों को बुलाया तो संघीय मोर्चे की संभावित पार्टियों के नेताओं को भी न्योता दिया। इस तरह से उन्होंने अपने को भाजपा विरोधी राजनीति की धुरी बनाने की कोशिश की है।
वे आगे लिखते हैं – नेता तब अपनी कब्र खोदता है, जब वह ब्रांड की फितरत में होता है। व्यक्ति अपने विचार, जमीन, मेहनत, भाग्य, परिस्थितियों से सत्ता पाता है और सत्ता उसे मुगालते में डालती है। उसे ब्रांड के फेरे में फंसाती है। नेहरू अपने इंडिया के आईडिया हो जाते हैं! इंदिरा वही इंडिया हो जाती हैं तो वाजपेयी शाईनिंग इंडिया वाले बनते हैं! सत्ता ज्यों-ज्यों बड़ा आकार लेती है, मुगालता बढ़ता है। यह नरेंद्र मोदी के साथ हुआ है, हो रहा है। कभी नरेंद्र मोदी पांच करोड़ गुजरातियों की बात करते थे। आज सवा अरब लोगों का हुंकारा मारते हैं। अपने को सुपर वैश्विक ब्रांड हुआ मान रहे हैं। इसमें भी हर्ज नहीं है, लेकिन इस ब्रांड एप्रोच में दिक्कत यह है कि सब प्रायोजित या नकली हो जाता है। जमीन से जुड़ाव टूट जाता है। नेता को पता नहीं पड़ता कि कब उसकी कमाई पूण्यता चूक गई है। वह कैसे नकली जीवन, नकली नारों, नकली उपलब्धियों में जी रहा है! हर तरह से नकली परिवेश, नकली लोग, नकली प्रबंधक, नकली मंत्रियों में घिरा हुआ एक ब्रांड!
नरेंद्र मोदी का आज का मुकाम मंझधार से कुछ पहले का है। अभी पीछे ओरिजनल गुजरात ब्रांड की तरफ लौटने की कुछ गुंजाइश है लेकिन दिल्ली के चेहरों, परिवेश और सिस्टम ने सुपर ब्रांड बनने की उनमें जो धुन पैदा की है उससे मुक्ति, पीछे हो सकना आसान नहीं है। वे अपने सुपर ब्रांड की वेल्यू सवा अरब लोग कूत रहे हैं। वे अपनी ब्रांड एंबेसडरी से अऱबों-खरबों डालर भारत आता देख रहे हैं। वे नित दिन लोक-लुभावन शो, उत्सव कर रहे हैं। उन्होंने और उनके प्रबंधकों ने 2019 तक के रोड शो, उत्सव, झांकियों, घोषणाओं, भाषणों, वैश्विक नेताओं से मुलाकातों, शिखर वार्ताओं, उद्यमियों-कारोबारियों के जमावड़ों की लंबी चौड़ी सूची बना ली है। सबकुछ भव्यता, ऊंचाईयां लिए हुए होगा जिसमें आकर्षण के नंबर एक सुपर ब्रांड होंगे-नरेंद्र मोदी!
सोचें कितना रूपहला, मनमोहक, धुनी महासंकल्प है यह! लेकिन यह सब मायावी है। इसलिए कि जनता को ब्रांड नहीं चाहिए। उसे अपने मध्य का अपने जैसा, अपनापन बताने वाला नेता चाहिए। उसे दाल चाहिए। उसे टमाटर चाहिए। उसे बिजनेस आसान नहीं जीना आसान चाहिए। यह बहुत गलत बात है, गलत थ्योरी है कि नरेंद्र मोदी से जनता को बड़ी-बड़ी उम्मीदें हैं। बड़ा विकास चाहिए। ऐसा कतई नहीं है। इन सबकी नरेंद्र मोदी से यह मामूली अपेक्षा थी और है कि वे उनका जीना आसान बनाएंगे। ये सब चाहते हैं कि वह सब न हो जो कांग्रेस के राज में होता है या जातिवादी क्षत्रपों की कमान में हुआ करता है। मतलब मनमानी, भ्रष्टाचार और तुष्टीकरण नहीं हो। इसमें भी नंबर एक बात भ्रष्टाचार मिटने की चाह थी। लेकिन नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभालने के बाद निज आत्ममुग्धता में यह ख्याल पाला कि वे खाते नहीं हैं, तो पंचायत में मनरेगा की मजदूरी भी नहीं खाई जा रही होगी। जाहिर है ऐसा सोचना और उस अंतिम व्यक्ति पर पड़ रही भ्रष्टाचार की मार को भुला बैठना ही मोदी के नकली परिवेश, नकली ख्याल, नकली ग्लैमर का नंबर एक प्रमाण है।
नौजवानों ने इतना भर चाहा कि उन्हें छोटा ही सही कुछ काम मिले। इनका मन छोटी नौकरी या छोटे बेरोजगारी भत्ते से भी उछलने लगता। मई 2014 में परिवर्तन की ट्रेन में जो संघी, भाजपाई, हिंदूवादी, राष्ट्रवादी बैठे थे वे सिर्फ वैचारिक खुराक का संतोष चाहते हैं। इन्हें इतना भर चाहिए था कि प्रधानमंत्री, मंत्रियों के निवास के दरवाजे-खिड़की उनके लिए खुले रहें। इन्होंने सहज यह उम्मीद बनाई थी कि यदि अपनी सरकार आई है तो उन्हें वह मौका मिलेगा, वह मान-सम्मान मिलेगा, वे पद मिलेंगे, वे नई संस्थाएं, नए सत्ता टापू बनेंगे जो नेहरू के आईडिया ऑफ इंडिया के प्रतिस्थापन की नींव, उनके ख्यालों के भारत की तस्वीर-तकदीर बना सके। निज ब्रांड, निज ख्याल, नकली परिवेश, नकली चेहरे जमीन पर नहीं रहा करते। वे मंच पर अभिनय करते हैं। ड्राइंग रूम में होते हैं और दिल्ली के इनसाइडर में रमे होते हैं। सो लाख टके का सवाल है कि नकली दुनिया से बाहर निकल नरेंद्र मोदी पीछे लौट मोहन भागवत के साथ क्या विचार करेंगे?
अब इस नयी नीतीश सरकार को भी कुछ समय देना बनता है ताकि वे कुछ नए फैसले लें और जनता की उम्मीदों, अपेक्षाओं पर खरे उतरें… शुभकामनाओं के साथ, जय बिहार!
- जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Saturday 14 November 2015

मोदी का दीवाना हुआ लंदन

आज पूरे विश्व में मूल रूप से दो समस्या है – एक आतंकवाद और दूसरा ग्लोबल वार्मिंग.
आतंकवाद से पूरा विश्व किसी न किसी रूप में ग्रसित है. इसका सबसे ताजा उदाहरण फ्रांस ही है. जिसमे सैंकड़ो लोग मारे गए हैं और हजारों प्रभावित हुए हैं. इसके पहले भी जनवरी में फ्रांस के एक प्रेस 'शार्ली हेब्दो’ के मुख्यालय पर हुआ था जहाँ ११ लोग मारे गए थे.
ग्लोबल वार्मिंग भी आने वाले समय में पूरे विश्व को तकलीफ देनेवाले हैं. इन दोनों विषयों पर पूरे विश्व को चिंतन कर इसके स्थायी हल की तरफ कार्य करने की जरूरत है.
जिस तरह से प्रधान मंत्री मोदी का स्वागत लंदन के वेम्बली स्टेडियम में हुआ है, जिस तरह से वहां रहनेवाले भारतीयों ने प्रधान मंत्री का शानदार स्वागत किया है यह भारत के लिए गर्व की बात तो है ही. प्रधानमंत्री ऐसे मौकों पर अपने आप को बेहतरीन ढंग से पेश करने में हर संभव कोशिश करते हैं, जैसे ग्लोबल वार्मिंग से मुक्ति के लिए दुनिया के १०२ देशों को आह्वान किया कि वे सूर्यपुत्र हैं और वहां सूर्य की रोशनी भरपूर रहती है तो क्यों नहीं सौर उर्जा को इन देशों में बढ़ावा दिया जाय इससे गैरपारंपरिक बिजली तो मिलेगी ही, कोयले, पानी आदि प्राकृतिक संसाधनों की बचत भी होगी और ग्रीन हाउस गैसों का उत्पादन भी कम होगा. बिजली की बचत भी जरूरी है, साथ ही जरूरी है भारत के उन १८००० गांवों में बिजली पहुँचाना, जो अभी भी बिजली के पहुँच से दूर हैं. प्रधान मंत्री ने अपने भाषण में अलवर, राजस्थान के इमरान खान की भी चर्चा की जिसने मोबाइल में में ५० फ्री एजुकेशनल एप्प बनाये है. वेम्बली में लगभग ६०० भारतीय कलाकारों ने अपने हुनर का प्रदर्शन किया जिससे विदेशों में हमारा सर ऊंचा हुआ. वहीं से उन्होंने अहमदाबाद से लंदन के लिए डायरेक्ट फ्लाइट की भी घोषणा की, जिससे वहां उपस्थित अधिकांश गुजराती और पंजाबी लोगों में हर्ष की लहर दौर गयी. मोदी के अच्छे दिन की चर्चा डेविड कैमरन ने भी की. सबसे बड़ी बात तो मुझे यह लगी की लेडी कैमरन वहां साड़ी में नजर आयीं और पूरे कार्यक्रम में वे भी मौजूद रहे.
''ब्रेनड्रेन'' देशप्रेमी भारतीयों के लिए सदैव दुख का विषय रहा है. पर दूसरा पहलू भी महत्वपूर्ण रहा कि तमाम प्रतिभाओं को स्वदेश में अनुकूल माहौल और सम्मान न मिलने के कारण ही उन्हें विदेश में रोजी-रोटी तलाशनी पड़ी. प्रवासी भारतीय अब हर देश में पचासों हजार की तादाद में मोदी-मोदी के नारे लगाते हुए अपनी खुशी और उत्साह का प्रदर्शन कर रहे हैं. जाहिर है कि उन्हें 'मोदी' से कोई लगाव हो या न हो भारत के उस प्रधानमंत्री को देखकर उन्हें खुशी होती है जिसने कई दशक बाद भारत को विदेशी धरती पर एक 'खास सम्मान' दिलाया है. मोदी के नेतृत्व में ''भारत को जो सम्मान और रुतबा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर'' मिल रहा है, उसने प्रवासी भारतीयों का सीना ''छप्पन'' का कर दिया। आत्म-गौरव उन्हें प्रफुल्लित कर रहा है. इसका सार्वजनिक प्रदर्शन करने से वो गुरेज नहीं कर रहे. उनका दबा हुआ भारत-प्रेम मोदी को देखकर कुलांचे मार रहा है. मोदी ने दशकों बाद उन्हें वह खुशी व्यक्त करने का मौका दिया जिसकी चाहत वर्षों-दशकों से वो सीने में दबाये हुए थे. ''मोदी-मोदी'' के उनके नारे में वास्तव में ''भारत-भारत की हुंकार'' ही छिपी है.
अब आते है वहां के संवाददाताओं से पूछे गए सवाल और मोदी के जवाब पर -
भारत बुद्ध की धरती है, गांधी की धरती है और हमारी संस्कृति समाज के मूलभूत मूल्यों के खिलाफ किसी भी बात को स्वीकार नहीं करती है. हिन्दुस्तान के किसी कोने में कोई घटना घटे, एक हो, दो हो या तीन हो.. सवा सौ करोड़ की आबादी में हमारे लिए हर घटना का गंभीर महत्व है. हम किसी को टॉलरेट (बर्दास्त) नहीं करेंगे. कानून कड़ाई से कार्रवाई करता है और करेगा। भारत एक विविधिता पूर्ण लोकतंत्र है जो संविधान के तहत चलता है और सामान्य से सामान्य नागरिकों, उनके विचारों की रक्षा को प्रतिबद्ध है, कमिटेड है
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीबीसी के रिपोर्टर के एक प्रश्न के जबाब में यह बातें कहीं. उस संवाददाता ने यह प्रश्न किया था कि भारत क्यों लगातार असहिष्णु स्थल बनता जा रहा है? उस रिपोर्टर ने भारत में हाल की असहिष्णुता की घटनाओं का हवाला भी दिया था. प्रधानमंत्री मोदी ने न सिर्फ उचित जबाब दिया बल्कि सारी दुनिया को यह आश्वासन भी दिया कि भारत के किसी भी हिस्से में असहिष्णुता को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.- हालाँकि यह बातें बहुत पहले भारत में कही जानी चाहिए थी. इसे कहने में श्री मोदी ने काफी देर कर दी और दूसरे-दूसरे मुद्दे में उलझकर रह गए, फलस्वरूप बिहार में उनकी पार्टी तीसरे नंबर की पार्टी बनकर रह गयी.
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के साथ वार्ता के बाद जो संयुक्त संवाददाता सम्मेलन हुआ द गार्डियनके रिपोर्टर ने पीएम मोदी से लंदन की सड़कों पर हो रहे प्रदर्शन के बारे में पूछा था और गुजरात में उनके कार्यकाल पर भी सवाल खड़ा किया था कि लंदन की सड़कों पर यह कहते हुए प्रदर्शन हुए हैं कि गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर उनके रिकॉर्ड को देखते हुए वह उस सम्मान के हकदार नहीं हैं, जो विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता को सामान्य तौर पर मिलता है.  
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने जवाब में कहा, “अपना रिकॉर्ड दुरुस्त कर लीजिए. 2003 में मैं यहां आया था और मेरा बहुत स्वागत, सम्मान हुआ था. यू.के. ने मुझे कभी यहां आने से नहीं रोका. कोई प्रतिबंध नहीं लगाया. मेरे समायाभाव के कारण मैं यहां नहीं आ पाया, यह अलग बात है. कृपया अपना परसेप्शन (नजरिया) ठीक कर लेंप्रधानमंत्री मोदी ने उस रिपोर्टर को बहुत सटीक, सही और करारा जबाब देकर निरुत्तर कर दिया.   
द गार्डियनसमाचार पत्र के एक पत्रकार ने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में मोदी के साथ खड़े ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन से सवाल किया कि मोदी का देश में स्वागत करते हुए वे कितना सहज महसूस कर रहे हैं, खासकर इस तथ्य को देखते हुए कि उनके प्रधानमंत्री पद के पहले कार्यकाल के समय मोदी को गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर ब्रिटेन आने की अनुमति नहीं दी गई थी. कैमरन ने अपने जवाब में कहा, “मुझे मोदी का स्वागत करने में प्रसन्नता है. वह एक विशाल और ऐतिहासिक जनादेश के बाद यहां आए हैं. जहां तक अन्य मुद्दों का सवाल है, उसकी कानूनी प्रक्रियाएं हैं.  
बिट्रिश प्रधानमंत्री ने कितना सटीक जबाब दिया है. हमारे देश में प्रधानमंत्री मोदी को मिले जिस विशाल और ऐतिहासिक जनादेश की आज विदेशों में जय-जयकार हो रही है. जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ब्रिटिश संसद में दिए गए भाषण की तारीफ़ की है और एक अच्छे राजनीतिज्ञ का परिचय दिया है. उन्होंने एक ट्विटर अकाउंट पर किए गए एक ट्वीट के जवाब में कहा, ‘भारतीय प्रधानमंत्री ने ब्रिटिश संसद में वहां के सांसदों के समक्ष बेहतरीन भाषण दिया. हम उससे क्यों गौरवान्वित नहीं हो सकते. यह देश के लिए गौरव की बात है,
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेहद शानदार और कई मायनों में ऐतिहासिक भाषण ब्रिटिश संसद में दिया. उसकी जितनी भी तारीफ़ की जाये, वो कम है. अपने ब्रिटेन दौरे के अंतर्गत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न सिर्फ ब्रिटिश पार्लियामेंट में शानदार और ऐतिहासिक भाषण दिया, बल्कि लंदन के वेंबले स्टेडियम में भारतीय समुदाय के 60 हजार से ज्यादा लोगों की रिकार्डतोड़ और ऐतिहासिक भीड़ को सम्बोधित करते हुए कहा कि हम दुनिया से अब मेहरबानी नहीं चाहते. हम बराबरी चाहते हैं, मैं 18 महीनों के अनुभव से कह सकता हूं कि आज भारत के साथ जो भी बात करता है बराबरी से बात करता है. यह पूरे देश के लिए गौरव की बात है. उन्होंने कहा कि भारत अब विकास के पथ पर चल पड़ा है. भारत के गरीब रहने का कोई कारण नजर नहीं आता. दुनिया भारत में एक नई संभावना देख रही है. भारत के प्रति दुनिया का नजरिया बदला है. पहले हाथ मिलाते थे अब हाथ पकड़ कर रखते हैं. यह बदलाव भारत की सफलता की निशानी है.
अब आता हूँ अपनी बात पर. कुछ बातों पर मोदी जी अपनी ही पीठ बार-बार ठोकते नजर आते हैं. जनधन, स्वच्छता आदि पर वे बहुत बार बोल चुके हैं. तीस से अधिक विदेश यात्राओं के अगर परिणाम दिखेंगे तो बोलने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी. कृषि, शिक्षा और स्वास्थ्य में अपेक्षित निवेश और रोजगार के अवसर पैदा करने होंगे ताकि ये भारतीय विदेशों की जगह अपने देश में ही रहकर देश का अपेक्षित विकास करें. भारत के नौजवान मोदी जी को आशा भरी नजरों से देख रहे हैं. उनका प्रयास यथोचित है पर उनकी टीम के कुछ लोग या अफसरशाही उनके कार्य में रोड़ा अटका रही है. उन्हें इससे आगे निकलना ही होगा. सबको साथ लेकर चलने की प्रतिबद्धता का मतलब विपक्ष को भी साथ लेकर चलना होना चाहिए. कौन विपक्ष जनता और देश का विकास नहीं चाहेगा और अगर नहीं चाहेगा तो जनता उसका जवाब देगी.  जयहिंद! जय भारत!

– जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.