Wednesday 3 April 2013

दो भाई -पांचवी (समापन) किश्त!

गतांक से आगे)
भुवन की लड़की पारो (पार्वती) शादी के लायक हो चली थी. एक अच्छे घर में अच्छा लड़का देख उसकी शादी भी कर दी गयी. शादी में भुवन और गौरी ने दिल खोलकर खर्चा किया, जिसकी चर्चा आज भी होती है. बराती वालों को गाँव के हिशाब से जो आव-भगत की गयी, वैसा गाँव में, जल्द लोग नहीं करते हैं.******
चंदर का बेटा प्रदीप शहर में रहकर इन्जिनियरिंग की पढाई कर रहा था.. दिन आराम से गुजर रहे थे. पर विधि की विडंबना कहें या मनुष्य का इर्ष्या भाव, जो किसी को सुखी देखकर खुश नहीं होता बल्कि चाहता है कि अमुक आदमी जो खुशहाल है, कैसे तंगहाल हो जाय ताकि उसके मन को शांति मिले!*****
कहते हैं, गरीब की जोड़ू, पूरे गाँव की भौजी! गौरी गरीब परिवार से थी और सुन्दर भी थी, पर किसी को भी पास फटकने न देती थी. गाँव के कुछ बदचलन किशम के लोग हमेशा मौके की तलाश में रहते और अकेला देख फूहड़ मजाक भी कर डालते!
बिफन और बुधना उन्ही लोगों में से था – “अकेला देख कहता – का भौजी, कैसे हैं? आप अइसन सुन्दर शरीर लेकर खेत में काम करते हैं! हमको बड़ा दुःख होता है! भुवन को तो आपका कीमत ही नहीं मालूम. वो भी दिन भर खेत में ही लगा रहता है और रात में थक कर दालान में सो जाता है! कभी हमलोगों को भी मौका दीजिए न! …..आपको फिर कभी खेत में काम नहीं करना पड़ेगा.”
गौरी सुन्दर और गरीब होने के बावजूद भी किसी को घास नहीं डालती, या तो चुपचाप सुन लेती, नहीं तो मुंहतोड़ जवाब भी देती-”बुलावें का भैया को!…. जीभे उखाड़ लेंगे! …..का समझ के रक्खे हो! ….जाओ अपना रास्ता नापो!”
बिफन और बुधना के मन में टीस होता रहता था…..

एक दिन भुवन और चंदर दूर के खेतों में काम में लगे थे, गौरी अपने पुराने नौकर (रोहन) के साथ गाँव के नजदीक वाले खेत में पानी पटाने में लगी थी. पानी जाने वाला ‘करहा’ (कच्ची नाली) बिफ़न और बुधना के खेत से होकर गुजरता था.. उस दिन मौका देख उनलोगों ने आपस में प्लान बनाया, “ई गौरी ही बड़ी भाग्यवन्ती बन कर आई है, भुवन की जिंदगी में! उसी के आने के बाद से भुवन के यहाँ चमत्कार हुआ है. इसी को साफ़ कर देते हैं, ना रहेगा बॉस ना बजेगी बांसुरी!” – आज ही मौका है, गौरी को मजा चखाने का. हरखू के दालान की कोठरी में प्लानिंग हुआ. चखना के साथ दारू भी चला और प्लानिंग के अनुसार पहले बिफन और बुधना गौरी के पास गए. कहा – “आपका पानी आज इधर से नहीं जाएगा.”
“काहे?” – गौरी बोली.
“हमारा खेत ख़राब होता है.”
“लेकिन यह तो आज से नहीं जा रहा है पानी. सबका पानी तो इसी ‘करहे’(कच्ची नाली) से जाता है.”
“सबका जाता है, लेकिन आज हम नहीं जाने देंगे.” फिर उन दोनों ने एक दूसरे को कनखी मारी
“ठीक है, तो देखते हैं कौन ‘माई का लाल’ मेरा पानी रोकता है.”
“बिफ़न ने करहे में कुदाल से मिट्टी डाल दी, फलस्वरूप पानी इधर उधर फैलने लगा.”
गौरी ने अपने नौकर रोहन से कहा – “बाबु, मिट्टी हटा दो और पानी को बर्बाद होने से बचाओ.”
बिफ़न बीच में आ गया – “आओ तो देखते हैं”…. और उसने नौकर को धक्का दे हटा दिया.
गौरी ने नौकर को गिरने से बचाया और उसने बिफ़न को जोर का धक्का दिया, बिफ़न जमीन पर गिर गया.
अब बुधना जो लाठी सम्हाले हुए था, एक लाठी गौरी के पीठ पर दे मारी.
अब गौरी आग बबूला हो गयी और उसने बुधना की लाठी छीन ली और उसे मारने को तैयार ही थी कि बिफ़न उठकर गौरी को धक्का दे गिरा दिया.
मौके की तलाश में घात लगाये नकटा (बिफन और बुधना का यार मार काट के लिए मशहूर) भी अचानक प्रकट हो गया – उसके हाथ में फरसा था.
‘मारो’! ‘काटो’!…. की आवाज के बीच उसने फरसे से भी वार कर दिया. फरसा गौरी के कंधे पर लगा और वह छटपटा कर गिर गयी. उसके बाद हरखू भी कही से आ गया, उसके हाथ में भी लाठी थी. सबने मिलकर एक निहत्थी महिला पर खूब ‘मर्दानगी’ दिखलाई. लाठी के प्रहार से पूरे शरीर को चूर कर दिया. नौकर (रोहन) दौड़कर चला गया, भुवन और चंदर को बुलाने….. तबतक गांव के और लोग भी इकट्ठे हो गए थे. कुछ लोगो ने बीच बचाव किया … तब वे लोग (चारो) वहां से खिसक लिए.
थोड़ी ही देर में भुवन और चन्दर आ पहुंचे. कोशिला अपनी जेठानी को पानी पिला रही थी और बहते हुए खून को रोकने का भरपूर प्रयास कर रही थी. गौरी रोये जा रही थी और उन चारो दुश्मनों को गाली भी दे रही थी. दोनों भाइयों के साथ कुछ अन्य भले लोगों ने मिलकर गौरी को खाट पर सुलाया और खाट को ही कंधे पर लेकर पैदल ही अस्पताल की तरफ चले. रास्ते में ही थाना था, उन्होंने थाने में रिपोर्ट भी लिखवा दी. गौरी ने उसी अवस्था में बयान दे दिया और अभियुक्तों के नाम भी बतला दी. फिर वे लोग उसे नजदीक के अस्पताल में ले गए. यह अस्पताल भी गाँव से कोई छ: मील की दूरी पर था. पहले इस अस्पताल में इलाज हुआ. पर छोटे शहर के सरकारी अस्पताल में ज्यादा सुविधा न थी. फिर उसे बड़े शहर(पटना) के बड़े अस्पताल में ‘रेफर’ किया गया. इलाज हुआ… पर खून काफी निकल चुका था. हड्डियाँ भी जगह जगह से टूट चुकी थी. चार दिन बाद, गौरी अपनी मौत से हार गयी और इस दुनिया को छोड़ भगवान् को प्यारी हो गयी.
उन बदमाशों ने मिलकर एक अबला और निहत्थी नारी को मारा था. गौरी झांसी की रानी लक्ष्मी बाई की तरह लड़ते लड़ते मरी थी. मरते दम तक वह हिम्मत नहीं हारी थी.
भुवन और चन्दर उसकी अंतिम सांस तक साथ रहे और अंत में पटना में ही, गंगा के किनारे दाह-संस्कार कर दिया. वही पर उन लोगों ने कशमें खाई कि उन चारों हत्यारों को सजा दिलाकर रहेंगे. अगर कोर्ट सही फैसला नहीं करता है, तो वे उनको खुद सजा देंगे.
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कई सालों तक मुक़दमा चला और हत्या के जुर्म में चार दोषियों ( बिफन, बुधना, नकटा और हरखू) को आजीवन कारावास की सजा हो गयी! अन्य दो लोगों को भी, जो इस षड्यन्त्र में शामिल थे, उन्हें भी १० साल की कठोर सजा सुनाई गयी.
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कोर्ट ने अपन काम किया. दोषी को सजा मिल गयी. पर भुवन इन दिनों टूट सा गया! उसे किस अपराध की सजा मिली?उसने तो किसी का बुरा नहीं चाहा था. गौरी उसके लिए लक्ष्मी साबित हुई थी. घर बाहर हर तरह से उसके साथ रहती थी, दुःख में भी, सुख में भी. पार्वती भी अपने माँ के गम में डूबी है, चन्दर सबको ढाढस बंधा रहा है. पर वह भी अंदर अंदर विलाप करता है, क्योंकि उसके लिए भाभी ‘माँ’ समान थी.
सजा काट रहे चार मुख्य अभियुक्तों में एक नकटा (जिसने फरसे से वार किया था) को पक्षाघात (लकवा) मार गया और कुछ दिनों बाद उसकी जेल में ही मृत्यु हो गयी. बाकी ३+२ अभी सजा काट रहे हैं.
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किसी को गौरी के ‘जन्म दिन’ के बारे में किसी को नही पता. पर उसके ‘बलिदान दिवस’ को सभी याद करते हैं. भुवन, जो कभी ‘प्रत्यक्ष पूजा पाठ’ नहीं करता था, ‘बलिदान दिवस’ के दिन देवी के मंदिर में जाता है और अपनी पत्नी से माफी मांगता है – “धिक्कार है मुझे, जो मैं तुझे बचा न सका! तुम्हे स्वर्ग में ही स्थान मिला होगा, क्योंकि तुम शहीद हुई थी”. ……..बलिदान दिवस के दिन रामायण पाठ का आयोजन होता है और गांव के सभी लोग उस वीरांगना को श्रद्धांजलि देते हैं!(यह कहानी कल्पित नहीं, सच्ची घटना है! इसके पात्रों के नाम सिर्फ काल्पनिक है )

दो भाई … चौथी किश्त!

जिस इलाके की यह कहानी है, वह पटना के पास का ही इलाका है, जहाँ की भूमि काफी उपजाऊ है. लगभग सभी फसलें इन इलाकों में होती है! धान, गेहूँ, के अलावा दलहन और तिलहन की भी पैदावार खूब होती है. दलहन में प्रमुख है मसूर, बड़े दाने वाले मसूर की पैदावार इस इलाके में खूब होती है. मसूर के खेत बरसात में पानी से भरे रहते हैं. जैसे बरसात ख़तम होती है, उधर धान काटने लायक होने लगता है और इधर पानी सूखने के बाद खाली खेतों में मसूर की बुवाई कर दी जाती है. मसूर के खेत, केवाला मिट्टी (चिकनी मिट्टी) वाले होते हैं. इन खेतों में बरसात के बाद दरारें फट जाती हैं, फिर भी इनमे नमी बरक़रार रहती है. मसूर, चना, मटर, खेसारी, सरसों, राई, तीसी आदि को पानी नहीं देना पड़ता है. प्राकृतिक वर्षा जो शरद ऋतू में होती है, वही इनके लिए पर्याप्त होता है. शरद ऋतू में इन खेतों से होकर गुजरना बड़ा ही मनभावन होता है! कहते है – “अस्सल का बेटी और केवल का खेती! अगर सम्हल गया तो गंगा पार, नहीं तो बंटाधार” !
होली से पहले ही इन फसलों की कटाई कर ली जाती है और खलिहान में इनके दाने अलग कर, खलिहान से ही बिक्री कर दी जाती है. शहर के ब्यापारी बैलगाड़ी पर बोड़े में भरकर इन्हें अपने गोदामों में संचित करते हैं और आवश्यकतानुसार दाल के मिलों, या तेल के मिलों में इनको इस्तेमाल के लायक बनाकर बाजारों में बेचा जाता है.
होली के आस पास जब बैलगाड़ियाँ गांवों में आती है, तो बच्चों के अन्दर कौतूहल जगता है … इन बैलगाड़ियों की गिनती करने का …एक, दो,,,दस, ग्यारह … पचास, इकावन … बैलगाड़ियों की लाइन लग जाती है.
भुवन के पास से ब्यापारी को ढेर सारा माल एक ही जगह पर मिल जाता है, अन्य किसान भी इन्ही ब्यापारियों को अपना माल बिक्री कर देते हैं. यह कहानी उस समय की है जब सड़कें कच्ची थी और बैलगाड़ियाँ ही गांव के खलिहानों तक पहुँच सकती थी.
ब्यापारी भुवन से मोल भाव कर रहा था – “५०० रुपये प्रति मन (१ मन = ४० सेर लगभग ४० किलो ).”…. “नहीं, ४५० रुपये का भाव मिलेगा”….. इस मोल भाव के बीच कही सौदा पक्का हो जाता, तभी हरखू वहां पहुँच गया और बोला – “सेठ जी, ले लीजिये. बेचारे का ऐसे ही इस साल बहुत नुकसान हो गया है, भुवन का… क्या है कि आग लग गयी थी न, इसके गांज में!” … ‘आग लग गयी थी’ सुनकर सेठ (ब्यापारी) के कान खड़े हो गए और वह मसूर के दानों को अनुवीक्षण वाले नेत्र से देखने लगा … “अरे, इसमे तो बहुत दाना काला है, यह तो ४०० रुपये के ही भाव पर बिकेगा!”
भुवन का तो खून ही सूख गया और वह ठेलते हुए हरखू को वहां से ले गया – “साला बड़ा सयाना बनता है, एक तो उस समय तुम्ही लोगों ने आग लगवाई और ऊपर से आ गए दलाली करने!” – चंदर भी खींच कर ले गया और गाँव वालों के सामने उसकी भी धुनाई कर डाली…. “बिफ़न और बुधना को यही चढ़ाया था, आग लगाने के लिए! नहीं तो उन सालों की इतनी हिम्मत न थी!” गांव वाले तो गांव वाले ठहरे, दो ग्रुप यहाँ भी थे, कोई हरखू को समर्थन करता तो कोई भुवन और चन्दर को ….भुवन का गुस्सा सातवें आसमान पर था, वह तो हरखू को मार ही डालता, पर लोगों के बीच बचाव से उस दिन हरखू की जान बच गयी.
बड़ी अजीब स्थिति है … भारत गांवों का देश है. लगभग ७०% आबादी आज भी गांवों में रहती है … कहते हैं, यहाँ बड़ा मेल-मिलाप होता है, सभी एक दुसरे के सुख-दुःख में साथ देते हैं, पर आजकल हर जगह राजनीति, इर्ष्या, डाह, जलन आदि का वातावरण बन गया है. जले पर नमक छिडकने से भी लोग बाज नहीं आते!
चाहे जो हो, तैयार अनाज को बेंचना ही पड़ता है, आखिर उसे घर में कहाँ रखा जा सकता है. फसल तैयार होने पर महाजन का ऋण भी चुकाना पड़ता है, जो खाद, बीज, डीजल आदि की खरीददारी के लिए लेने पड़ते हैं.
अब बिफन, बुधना के अलावा हरखू भी इन दो भाइयों का प्रत्यक्ष शत्रु बन गया था…. लोग इमानदार आदमी का भी जीना हराम कर देते हैं!
दरअसल सबका जड़ गौरी ही थी, सुन्दर के साथ, मिहनती और शालीन थी. भद्दे मजाक को बर्दाश्त न करती और उलटकर कड़ा जवाब देती! शोख किशम के लोग चाहते थे, थोडा आंख सेंकना और अगर मौका मिल गया तो नाजायज फायदा भी उठाना!
वो कहते हैं न कि मर्द बाहर से कमाकर लाते हैं और स्त्री उस धन को संजोकर लक्ष्मी बनाती है. ईर्ष्यालु लोगों के बीच भी भुवन और चन्दर को हर साल मुनाफा होता और कुछ खेत भी बढ़ जाते. खेत खरीदने में भी गांव में प्रतिद्वंदिता का सामना करना पड़ता. सर्वमान्य मुखिया जी से सहमती लेनी पड़ती, सूरज बाबु से भी मुकाबला करना पड़ता था और इस सबके चक्कर में खेत का दाम बढ़ जाता था. फिर भी ये दोनों भाई हार नहीं मानते और अपनी पूरी लगन के साथ, निष्ठा के साथ काम में लगे रहते.
दिन गुजर रहे थे. चंदर का लड़का इंजीनियरिंग की पढाई करने के लिए बड़े शहर में चला गया था. छुट्टियों में आता और सभी बड़ों को पैर छूकर आशीर्वाद लेता. इस किश्त को यहीं समाप्त करते हैं. शेष कथा अगले किश्त में!
क्रमश:)