Saturday 26 January 2013

राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस!


हर साल १५ अगस्त को स्वतंत्रता दिवस और १६ जनवरी को गणतंत्र दिवस आता है. उस दिन हम अपने वतन को याद करते हैं, शहीदों को याद करते हैं, स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हैं, देश में हुई तरक्की के पुल बांधते हैं, या फिर गरीबो की हालत देख कर नेताओं पर जम कर गुब्बार निकालते हैं.मैं बचपन से इन दिनों को रेडियो पर सुनता आ रहा हूँ और आजकल टेलीविजन पर देखता हूँ. १५ अगस्त के दिन प्रधान मंत्री के भाषण में कई नयी घोषणाएं, कुछ चुनौतियाँ और अंत में तीन बार जयहिंद! ….मैं बिना लाग-लपेट के कह सकता हूँ, इंदिरा जी के जयहिंद में जो जोश मुझे रेडियो पर सुनायी पड़ता था, वह मुझे किसी नेता (प्रधान मंत्री) के स्वर में नहीं सुनायी/ दिखाई पड़ता! उस समय हिंदी में आँखों देखा हाल सुनाने वाले श्री जसदेव सिंह जी की आवाज का कोई जवाब नहीं था.
अब आता हूँ गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस पर! स्वतंत्रता दिवस के दिन प्रधान मंत्री के भाषण का अब कोई महत्व नहीं रहा. क्योंकि वे वही बोलते हैं, जो कर नहीं सकते, तो लालकिला से लाल सपने दिखाने का क्या मतलब??? यह भाषण अब ‘उबाऊ’ लगने लगा है!
पर २६ जनवरी यानी गणतंत्र दिवस के दिन का आज भी अपना खास महत्व है! गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर वर्तमान राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का भाषण में देश के युवाओं का आक्रोश, युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म, बेरोजगारी की चिंता और नैतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना का सन्देश काबिले तारीफ कहा जायेगा!…उसके बाद शुबह की ठंढ में रायसीना हिल से राजपथ की सरगर्मी और विभिन्न झांकियां!… मन को मोह रहे थे. इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि भूटान नरेश के सपत्नीक उपस्थिति, हमारे सैन्य बल का प्रदर्शन, और देश भर के विभिन्न राज्यों और विभागों की झलकियाँ …. यानी पूरा भारत, एक जगह दिल्ली के राजपथ पर उपश्थित हो गया. विभिन्न सेना दल की टुकड़ी का परेड, हर राज्यों, प्रदेशों की संस्कृति की झलक क्या यह नहीं बतलाते कि भारत में विविधता में भी एकता है, सामंजस्य है…. हम आगे बढ़ रहे हैं, पर अपनी संस्कृति को साथ लेकर! ….अभी सतत प्रयास जारी है, रुकना नहीं है, आगे बढ़ते जाना है. ईमानदारी और कठिन परिश्रम के साथ….
अंत में नितीश कुमार द्वारा बंटती हुई जिलेबी देख कर मेरे मुंह में भी पानी आ गया … काश हम अभी भी बच्चे होते! …अगर हम अभी बच्चे नहीं हैं, तो क्या हुआ? हमारे और हमारे पड़ोसी के तो बच्चे हैं…… बाबु, जरा सुनो तो … जाओ कुछ जिलेबियां और समोसे लेकर आओ! आज गणतंत्र दिवस है!
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Monday 21 January 2013

हाय राम क्रिकेट का है जमाना!

शाम को टहलते हुए मैंने देखा की शर्मा जी अपने बच्चे के साथ किकेट खेल रहे हैं! मैंने चुटकी ली – “लगता है धोनी के रिटायर होने से पहले आप दूसरा धोनी तैयार कर लेंगे, क्या शर्मा जी?”
शर्मा जी मुस्कुराते हुए बॉल को हाथ में लेकर यूं ही घुमाने लगे.-” बिलकुल सही समझा है आपने! मैंने अपने बेटे का नाम इंग्लिश मीडियम में लिखा दिया है. वहां यह अंगरेजी बोलना सीख जायेगा और क्रिकेट में पारंगत हो जाय, बस और मुझे कुछ नहीं चाहिए!”
मैंने पूछा – “अचानक ऐसा परिवर्तन आपमें कैसे आ गया? हममे से ज्यादातर लोग तो अपने बेटे को डाक्टर, इंजिनियर या वकील बनाना चाहते है … आप तो ‘लीक’ से हटकर सोचने लगे!”
शर्मा जी चहकते हुए बोले- “वही तो, एक डाक्टर, इंजिनियर या वकील कितना कमा लेगा, जितना भी कमाएगा महीने के अंत में सब्जी के लिए अपनी पत्नी से ही पैसे मांगेगा. बेटी की शादी में दहेज़ के लिए कर्ज लेगा. सामाजिक प्रतिष्ठा बचाए रखने के लिए भी कर्ज लेगा. पर एक क्रिकेटर कितना कमा लेता है, इसका अंदाजा है आपको?… पैसे की बात छोड़िये … उसकी कितनी इज्जत है, समाज में और देश में. वह जीत कर आए तो जश्न! हार कर आने पर भी नयी रणनीति बनाने की सलाह हर आदमी देता है, जिसने क्रिकेट का नाम भर सुना है.”
“अभी रांची में अन्तर्राष्ट्रीय एक दिवसीय मैच हुआ. हमारी धोनी की सेना ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये. ऐसी मजबूत जीत की हमारा ‘टीम इण्डिया’ अंतर्राष्ट्रीय एक दिवसीय क्रिकेट के पहली पांवदान पर पहुँच गया. वह भी कब जब झारखण्ड यानी रांची में कोई सरकार नहीं है … राष्ट्रपति शासन लागू है!…. रांची के चारो तरफ ‘लैंड माइन’ बिछे हुए हैं. उससे निपटने के लिए हमारी पुलिस ढाल बनी हुई है. उसके बाद आम आदमी भी … क्या मजाल जो किसी खिलाड़ी का कोई बाल भी बांका कर सके. यही नक्सली किसी भी पैसे वाले से लेवी मंगाते हैं. पर आपने कभी सुना धोनी या किसी क्रिकेट प्लेयर से लेवी मांगी गयी हो. दरअसल वे भी क्रिकेट प्रेमी हैं, जंगल में अपने लैपटॉप पर मैच देखते हैं.”
“पिछले सप्ताह रांची या झाड़खंड की कहें तो कानून ब्यवस्था भी बिलकुल सही रही. कही कोई बलात्कार या लूट-पाट की घटनाएँ नहीं हुई. इलाहाबाद के कुम्भ में आए विदेशी शैलानी भी दो दिन के लिए रांची में आ धमके.सभी होटल हाउस फुल! कांग्रेस का ‘चिंतन शिविर’ भी मैच के दिन तक फीका ही रहा. जब हम मैच जीत गए, उसके बाद ही राहुल बाबा का सम्मोहक भाषण हुआ. मेरा मानना है कि यह क्रिकेट मैच हर दिन कहीं न कहीं होना चाहिए ! मीडिया भी क्रिकेट की ही ख़बरें दिखायेगा. बलात्कार, महंगाई जैसे विषयों को किनारे खड़ा कर देगा. आपने भी सुना होगा कि रांची के स्टेडियम में ४० रुपये लीटर पानी और ५० रुपये के समोसे खाने में किसी को भी कष्ट नहीं हुआ … सोचिये कितने लोगों की आमदनी अचानक बढ़ गयी. डॉ. मनमोहन सिंह को इस खेल में भी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा देना चाहिए. हमारा आर्थिक विकास दर क्रिकेट की बदौलत ही आगे बढ़ सकता है.
एक चीज और जो आज राहुल बाबा ने सबको कही. क्रिकेट (कांग्रेस) का डी एन ए हिन्दुस्तान है. एक इसी के नाम पर पूरा देश एक रहता है. न कोई जाति, न कोई धर्म, नहीं आतंकवाद, जिसे देखो अपने माथे पर, गाल पर, पेट पर, सायकिल पर, मोटर सायकिल पर, कार पर, ट्रक पर, बाल पर, बैट पर तिरंगा बनाये नजर आयेगा. इतना राष्ट्रीय भाव तो हिन्दुस्तान-पाकिस्तान के साथ लड़ाई में भी नहीं होता . अब तो मुझे लगने लगा है कि अगर १६ दिसंबर को भी अगर दिल्ली में मैच हुआ होता, तो शायद वे युवा प्रेमी युगल फिल्म के बजाय मैच ही देखने जाते और वह अनहोनी न होती जिससे आज तक हम सभी शर्मशार है. इसलिए क्रिकेट परमो धर्म है, क्रिकेट से ही वसुधैव कुटुम्बकम, क्रिकेट से राष्ट्रीयता, संस्कार आदि सभी में निरंतर सुधार होते रहेंगे! अब चलिए मोहाली वहां का नजारा देखेंगे. वैसे मोहाली या रांची को विश्व में कोई नहीं जानता, पर क्रिकेट के साथ प्रेम रखने वाले इन दोनों जगहों को भी अच्छी तरह जानने लगे हैं.”
मुझे शर्मा जी के ‘क्रिकेट दर्शन’ पर आश्चर्य हो रहा था … तब तक चाय का प्याला और स्नैक्स की प्लेट भी खाली हो गयी थी, जिसे शर्मा जी की मिसेज ने हम दोनों के बीच रख दिया था. शर्मा जी का बेटा अपने होम वर्क में कठिनाई महसूस करते हुए पास में आकर खड़ा हो गया था और तब मैंने प्रफ़्फ़ुल्लित मन से शर्मा जी से विदा ले ली! मेरे मन में एक फ़िल्मी धुन के तर्ज पर गाना याद आने लगा था – “मैं भी हुआ क्रिकेट का दीवाना, हाय राम क्रिकेट का जमाना!”

Sunday 13 January 2013

नारी शक्ति, जाग जाओ!


एक आह्वान! बहनों और बेटियों के नाम!
घोर चिंता का विषय, दुष्कर्म बनता जा रहा!
बात गैरों की नहीं, अपनों का डर सता रहा!
भारत-इण्डिया, लक्ष्मण-रेखा, नारियों के ही लिए !
समाधान, इन्साफ हो, चिंता भी इसकी कीजिये!

अमन व कानून के, रक्षक ही अब भक्षक बने!
ट्रेन से फेंका युवती को, आप यूं चलते बने!
इस धरा की नारियां, अब शस्त्र लेकर हाथ में,
जुल्म की वे दें सजा, ‘रूपम’ बने खुद आप में!
मोमबत्ती, भीड़ से अब हो नहीं सकता भला.
काट दो उस हाथ को, नारी नहीं है अबला!

*****
“छीनता हो स्वत्व कोई, और तू त्याग तप से काम ले यह पाप है
पुण्य है विछिन्न कर देना उसे बढ़ रहा तेरी तरफ जो हाथ है”

*****
'दिनकर' की ऐसी पक्तियां आज भी उपयुक्त है
शक्ति की देवी है तू, दे दंड गर तू भुक्त है
घर से बाहर तू निकल, शालीनता को साथ ले.
अनाचारी गर मिले, तो झट उसी का माथ ले.

काली, दुर्गा, लक्ष्मी बाई, सब तेरे ही रूप हैं
घर से बाहर आ निकल, ये जग नहीं कोई कूप है
लोक लज्जा क्या भला बस बेटियां सहती रहे.
और अपराधी दुराचारी सुवन घर में रहे!

हो नहीं सकता भला इस दानवी संसार में,
छोड़ ये मोमबत्तियां कटार लो अब हाथ में!
अम्ल की लो बोतलें, डालो रिपु के अंग पर!
पावडर मिर्ची की झोंको, नयन में उसे अंध कर!

आत्म रक्षा आप कर लो, रोकता अब कौन है?
कुछ नहीं बिगड़ेगा तेरा, क़ानून खुद मौन है!
कुछ नहीं बिगड़ेगा तेरा, क़ानून खुद मौन है!

Sunday 6 January 2013

राजनीति है क्या भला!…भाग -३ (मनमोहन का मन)

प्रधान मंत्री आज बहुत बेचैन हैं! उनके सामने बीते दिनों की याद चलचित्र की भांति घूम रही है…
महंगाई, भ्रष्टाचार, लूट, खसोट, हंगामा, अन्ना, रामदेव और केजरीवाल का ड्रामा…. पक्ष-विपक्ष एक दूसरे पर आरोप…. संसद ठप्प, भारत बंद, पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्यों में बृद्धि, और महंगाई!!! और उसके बाद आई, एफ डी आई… किसानो को ज्यादा फायदा. उपभोक्ता को सस्ते में सामान, और क्या चाहिए आपको श्रीमान!…ओ हो प्रोमोसन में आरक्षण!… वह भी दे देंगे महिला आरक्षण दिया है, तो यह भी दे देंगे!….. पर कुछ लोग हैं कि मानते नहीं, बेवजह मुद्दे को देते हैं हवा…. जैसे सत्ता इन लोगों की है रखैल…. अरे भाई तुम लोग हो आम आदमी….. भूखे रहोगे तभी काम करोगे. अभाव में रहोगे तो और ज्यादा काम करोगे! इसी लिए तो विद्वानों ने कहा है आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है…. आपलोग बेवजह शोर मचाते हैं…… कभी चीनी का दाम बढ़ने पर चिल्लाते हैं और ज्यादा चीनी खाकर मधुमेह को बढ़ावा देते हैं … पेट्रोल का दाम बढ़ने पर भी सडकों पर गाड़ियों का चलना कम नहीं हुआ ..अब तो लोग पान खाने के लिए भी गाड़ियों से निकलते हैं….. पैदल चलने के लिए गाड़ियों से जाते हैं… जिम जाने के लिए भी गाड़ियाँ और वह जाकर चलाएंगे सायकिल, जो कभी आगे नहीं बढ़ती.
बड़ा गड़बड़ है, संसद चले तो हंगामा… जब बंद है तो पब्लिक कहती है- नया कानून बनाओ. छुट्टी का समय है तो कहती हैं- संसद का विशेष सत्र बुलाओ. विशेष सत्र बुलाकर क्या फायदा? वहां भी तो हंगामा ही करेंगे. किसी को बोलने नहीं देंगे…. अध्यक्ष और सभापति की भी बात नहीं मानेंगे. चलो जो होता है, ठीक ही होता है. इसीलिये तो मैंने पूछ लिया था ‘ठीक है’? उस पर भी व्यंग्य! … क्या करें हम….. चलो इसी हंगामे के बीच पेट्रोल, डीजल आदि के दाम बढ़ाने का फैसला ले लेते हैं. जनता का ध्यान बंट जाएगा. अभी सी. एन. जी. का दाम बढ़ाया है, कोई शोर शराबा नहीं हुआ…
पर, उन युवाओं का क्या करें जो जंतर मंतर से हटने का नाम ही नहीं ले रहा .. इतनी ठंढ में भी डंटे हैं …वो तो अच्छा है…. विरोधी पार्टी और और आम पार्टी भी दूर से ही तमाशा देख रहा है. हमने तो कह दिया भाई नया साल नहीं मनाएंगे मुझे देख विपक्षी दलों ने भी घोषणा कर दिया .. नया साल नहीं मनाने का, मायावती, सुषमा जी महिला हैं, इसलिए महिला के दर्द को समझती है, पर मुलायम भाई को हम क्या कहें! ….उनका प्रदेश है उनकी मर्जी! अब ममता के चेलों को क्या हो गया ?…. छोडो वो तो अब मेरे साथ नहीं है.
चिदंबरम जी, वो ‘डायरेक्ट कैश ट्रान्सफर’ वाला स्कीम का क्या हुआ?… घोषणा हो गयी है न?… मोदी को भी समझाना पड़ेगा. बहुत बोलता है. अब न्यायालय की चपत लगी है लोकायुक्त मामले में … बचाले अपने आप को! जयशंकर प्रसाद ने ठीक ही लिखा था “अरुण यह मधुमय देश हमारा, जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा”… मैंने भी तो शरण दिया है- बंगला देशियों को, नेपालियों को तिब्बतियों को,…कुछ आतंकवादियों को भी और अब नक्सली भी आतंकवादियों की तरह तैयार हो गए है, उन्हें आयातित करने की जरूरत नहीं पड़ेगी ..बीच बीच में उनका खर्चा-पानी हथियार आदि मिलते रहना चाहिए! सब ठीक हो जायेगा ..शशि थरूर ने एक काम आसान कर दिया… अब पीडिता के नाम से स्मारक बनवाकर, उसके नाम से कानून बनवाकर, भीड़ को शांत किया जा सकता है… बाद में कुछ पुरस्कार वगैरह भी चालू कर देंगे …बलात्कार पीड़ितों के लिए …
बरसों पहले जब विनोद दुआ ने टी वी पर मुझसे सवाल किया था — “एक अर्थशास्त्री को राजनीति का कितना ज्ञान है?” .. मैंने उससे कहा था – “सीख रहा हूँ …और आज देखो सीख गया हूँ!”….. राजा, कलमाडी और कनिमोझी को तो जेल भिजवाया था. अब वो जमानत पर छूट जाते हैं तो हम क्या करें!…. कानून अपना काम काम करेगा और कर रहा है. इस दुष्कर्म वाले मामले भी कर रहा है …हम क्यों उसमे टांग अड़ाने जाएँ! …पर वो बहादुर नौजवान!… पीड़िता का मित्र! सचमुच बहादुर है! उसे भी सम्मानित करना चाहिए…. इसके लिए मैडम से पूछ ही लेते हैं!
(पूरा आलेख काल्पनिक है और यह लेखक के मनोभाव पर आधारित है.)